पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 30.pdf/२९४

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

२८२. पत्र: गो॰ कृ॰ देवधरको

साबरमती आश्रम
६ अप्रैल, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। मुझे यह जानकर खुशी हुई कि सेवासदनके कार्यके बारेमें 'यंग इंडिया' में लिखी मेरी टिप्पणियाँ आपको पसन्द आई। शोलापुर आकर आपकी संस्था देखना और आपके कार्यकर्त्ताओंसे मिलना मेरे लिए सचमुच बड़ी प्रसन्नताकी बात होगी।

मैं एक महीनेके लिए मसूरी जानेका इरादा रखता हूँ। मुझे उम्मीद है कि इस बार मलेरिया होनेके बाद मुझमें जो-कुछ कमजोरी अभी भी बनी हुई है, वह वहाँ दूर हो जायेगी।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत गो॰ कृ॰ देवधरको


अवैतनिक संगठनकर्त्ता और महामन्त्री
पूना सेवासदन सोसाइटी


७८९-७९०, सदाशिव पेठ, पूना सिटी

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९४२१) की माइक्रोफिल्मसे।

२८३. पत्र: ग्रीव्ज कॉटन व कम्पनीको

साबरमती आश्रम
६ अप्रैल, १९२६

महोदय,

एक सज्जनने मुझे पत्र[१] लिखा है, जिसमें उन्होंने बताया है कि आपके कार्यालयमें स्टेनोग्राफरके पदके लिए अर्जी देनेपर उन्हें बुलाया गया, परन्तु मैनेजरके पास जाते ही उनसे कहा गया कि जबतक वे खादी वस्त्र पहनना नहीं छोड़ते तबतक उन्हें नौकरी नहीं दी जा सकती। पत्र लेखकने जो शब्द उद्धृत किये हैं, उन्हें मैं ज्योंका-त्यों दे रहा हूँ: "हम सिद्धान्ततः अपने किसी भी कार्यालयमें इसकी इजाजत नहीं देते और यदि आप यूरोपीय फर्मोंमें काम करना चाहते हैं तो खादी पोशाक वहाँ नहीं चलेगी ।"

  1. देखिए "खादीके पक्ष और विपक्ष में", २२-४-१९२६।