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२८१. पत्र: मिल्टन न्यूबेरी फ्रैंजको

साबरमती आश्रम
६ अप्रैल, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। आपने जिस धार्मिक मान्यताके बारेमें मुझे लिख भेजा है, मुझे लगता है, मैं उसको स्वीकार नहीं कर सकता। उसको स्वीकार करनेवालेसे यह माननेकी अपेक्षा की जाती है कि ईसा मसीहमें अदृश्य परमात्म-तत्त्वकी सबसे अच्छी अभिव्यक्ति हुई थी। सारे प्रयत्नोंके बावजूद मैं इस कथनकी सत्यताको अनुभव नहीं कर पाया हूँ। मेरा विश्वास इससे आगे नहीं बढ़ सका है कि ईसा मसीह मानव जातिके महान् शिक्षकों में से एक थे। क्या आप यह नहीं मानते कि सभी लोगों के केवल एक ही सम्प्रदायके सदस्य होने और उसकी मान्यताओंमें यन्त्रवत् विश्वास करने मात्रसे धार्मिक एकता नहीं आ सकती, बल्कि इसके बजाय सबके एक-दूसरेके धार्मिक विश्वासोंका सम्मान करनेसे ही आ सकती है? मेरे विचारसे तो जबतक लोगों के पास अपनी-अपनी बुद्धि है और वे उस बुद्धिसे अलग-अलग सोचते-विचारते हैं, तबतक धार्मिक विश्वासोंमें भी भिन्नता अवश्य बनी रहेगी। लेकिन यदि ये सब...[१] प्रेम और पारस्परिक सद्भावके सामान्य मार्गपर चलते हैं, तो धार्मिक विश्वासोंकी भिन्नतासे क्या फर्क पड़ सकता है?

आपने जो टिकट भेजा है, उसे मैं वापस भेज रहा हूँ। इसका भारतमें उपयोग नहीं किया जा सकता।

हृदयसे आपका,

श्री मिल्टन न्यूबेरी फ्रैज
कॉलेकॉविले

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १२४६१) की फोटो-नकलसे।

३०-१७
 
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