यदि जनता इतना भी नहीं कर सकती तो वह क्या करेगी? खादी अन्य शुभ प्रवृत्तियोंकी विरोधी नहीं है। वह उनकी पोषक है, क्योंकि खादी-प्रचारसे देशका धन बढ़ता है और इस बढ़े हुए धनका उपयोग सहज रूपसे गरीबोंके लिए होता है।
इसलिए जो लोग दान देना चाहते हैं, मैं तो उन्हें भी खादीका दान देनेका सुझाव देता हूँ। जिन्होंने अभीतक विदेशी वस्त्रका त्याग नहीं किया है, क्या वे इस सप्ताह में विदेशी वस्त्र न पहननेका व्रत लेकर और खादी धारण करके स्वराज्य-यज्ञमें अपना योगदान नहीं करेंगे?
खादीके सम्बन्ध में जिन्हें शंका हो, उन्हें अपने-आपसे यह प्रश्न पूछना चाहिए:
यदि स्वराज्य खादीसे नहीं मिलेगा तो फिर दूसरी किस प्रवृत्तिसे मिलेगा और क्या हम उस प्रवृत्तिको चला सकेंगे अथवा उसमें भाग ले सकेंगे? मैंने तो अनेक बार अपने-आपसे ऐसा प्रश्न किया है, लेकिन मुझे तो ऐसी कोई दूसरी प्रवृत्ति नहीं मिल सकी है। अकेली खादीसे स्वराज्य नहीं मिलेगा, जिन्हें ऐसा लगे उन्हें, जान लेना चाहिए कि यहाँ वह प्रश्न ही नहीं उठता। खादी बिना स्वराज्य न मिलेगा। खादीसे नुकसान हो ही नहीं सकता; इसलिए हम चाहे और कुछ करें या न करें; लेकिन हमें खादीका प्रचार तो अवश्य करना चाहिए।
नवजीवन, ४-४-१९२६
२७५. सत्याग्रह-सप्ताह में आंशिक उपवास
सत्याग्रह सप्ताह में ६ और १३ तारीखको एकाशन व्रत रखने का सुझाव देनेकी हिम्मत ही नहीं पड़ती, इसीलिए मैंने 'यंग इंडिया' में इसके बारेमें लेख[१] लिखा, तब उसका उल्लेख ही नहीं किया। लेकिन जो लोग धार्मिक स्वराज्य चाहते हैं, जो आत्म-शुद्धिके द्वारा स्वराज्य-प्राप्तिकी इच्छा करते हैं वे लोग तो अवश्य दोनों दिन एकाशन करेंगे और उस दिन अपने दोषोंका दर्शन कर उन्हें दूर करनेका प्रयत्न करेंगे।
नवजीवन, ४-४-१९२६
- ↑ देखिए "राष्ट्रीय सप्ताह", ३-४-१९२६।