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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

चौथा कदम यह है कि ब्रह्मचर्यके पालनका आकांक्षी सत्संगका सेवन करे, अच्छी पुस्तकें पढ़े, और आत्म-दर्शनके बिना विकार जड़मूलसे नष्ट नहीं हो सकते, ऐसा समझकर सदा रामनामका जप करे और ईश्वर प्रसादकी याचना करे।

इन सबमें एक भी बात ऐसी नहीं है, जिसपर सामान्यसे-सामान्य स्त्री-पुरुष भी अमल न कर सकें। परन्तु इनकी यह सरलता ही एक बड़े पहाड़ के समान मालूम होती है। ब्रह्मचर्यकी आवश्यकताके बारेमें पूरी श्रद्धा न होनेसे मनुष्य अनेक प्रकारके व्यर्थ प्रयत्न किया करता है। इसमें शंका करनेका कोई कारण नहीं कि जिसके मनमें ब्रह्मचर्यकी इच्छा पैदा हो गई है, उसके लिए ब्रह्मचर्य का पालन साध्य हो जाता है। जगत ब्रह्मचर्यके कम या अधिक पालनसे ही टिका है। यह बताता है कि ब्रह्मचर्य आवश्यक है और उसका पालन करना सम्भव है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, ४-४-१९२६

२७४. सत्याग्रह सप्ताह

यह सप्ताह अब निकट आ रहा है। इस सप्ताहको मनानेकी मुझे जो अच्छीसे-अच्छी विधि दिखाई दी है, वह मैंने सुझाई है। सत्याग्रह एक महान् और सार्वभौम धार्मिक सिद्धान्त है। वह समस्त धर्मोमें उपलब्ध है। उसके बिना कोई धर्म नहीं टिक सकता। यह धर्मका आधार है। धार्मिक भावनाकी वृद्धि न हो तो सत्याग्रह कदापि नहीं चल सकता। सत्याग्रहके बिना स्वराज्य नहीं मिल सकता, यह तो असंख्य मनुष्य मानते हैं। हिन्दुस्तान तलवारके बलसे स्वराज्य प्राप्त नहीं कर सकता, यह बात भी असंख्य लोग मानते हैं; लेकिन सत्याग्रह कैसे किया जा सकता है, यह बात गिने-चुने लोग ही जानते हैं।

मेरा दृढ़ मत है कि जबतक हम चरखेके शान्तिदायक कार्यक्रमका अनुकरण नहीं करते, चरखेके द्वारा गरीबोंके साथ अपना सम्बन्ध शुद्ध नहीं बनाते और खादीको सम्मानका स्थान प्रदान नहीं करते तबतक हममें सत्याग्रह करनेकी योग्यता कदापि न आयेगी।

इसलिए मैंने सुझाव दिया है कि जिनका खादीमें जरा भी विश्वास है, उन्हें सत्याग्रह-सप्ताह खादी-प्रचारके द्वारा मनाना चाहिए। खादी-प्रचार कई तरहसे किया जा सकता है:

१. स्वयं हमेशा से अधिक सूत कातकर और दूसरोंसे कतवाकर;

२. स्वयं खादी पहनकर और दूसरोंको पहनाकर;

३. जहाँ खादी ज्यादा इकट्ठी हो गई है, वहाँ फेरीके द्वारा उसे बेचकर;

४. सप्ताह में खादीका उत्पादन स्वयं करके तथा दूसरोंसे करवाकर;

५. अपने सामर्थ्यानुसार खादी-कार्यके लिए धन देकर।

इस सप्ताहमें जितनी खादी इकट्ठी हो गई है वह सब बिक जानी चाहिए।