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२७२. राष्ट्रीय सप्ताह[१]

शनिवार, चैत्र बदी [५][२][३ अप्रैल, १९२६]

हमें अपना बहुमूल्य समय यों ही नष्ट नहीं करना चाहिए। हमारा मत और विश्वास चाहे जो भी हो, जो सप्ताह अब शीघ्र ही शुरू होनेवाला है, उसके दौरान हमें गम्भीरता से आत्म-निरीक्षण करना चाहिए। हर स्त्री और पुरुष अपने-आपसे यह पूछे कि उसने अपनी जन्मभूमिके लिए क्या किया है। सिर्फ व्याख्यान देनेसे, विधान सभामें जानेसे, स्वराज्यपर लेख लिखनेसे या कि समाचारपत्रोंका सम्पादन ही करनेसे स्वराज्य प्राप्त नहीं होगा, यद्यपि इन सब कामोंसे इसमें मदद मिल सकती है, और इनमें से कुछ काम आवश्यक भी माने जा सकते हैं। लेकिन वह कौन-सा काम है, जिसे हर व्यक्ति आसानीसे कर सकता है, जिससे भारतकी सम्पत्तिमें वृद्धि होगी, जिससे सहयोग और संगठनकी शक्ति बढ़ती है और जिससे हम एक-दूसरेके प्रति अपनापन महसूस करते हैं? उत्तरमें बिना किसी हिचकिचाहटके कहा जा सकता है कि वह काम है, चरखा चलाना। इसीलिए मैंने इस सप्ताह जोर-शोरसे खादीका प्रचार करनेकी सिफारिश की है। अतएव, यदि आपने अबतक किसी भी प्रकारका खादी-कार्य करना शुरू न किया हो, तो अब भी बहुत विलम्ब नहीं हुआ है। छोटी-छोटी चीजोंसे भी मदद मिलती है। खादीके मुख्य केन्द्रोंमें— जैसे तमिलनाड, बिहार, पंजाब, गुजरात, बंगाल इत्यादि स्थानोंमें—बहुत-सी बिना-बिकी खादी पड़ी हुई है। आपको किसी प्रान्त- विशेषका विचार करने की जरूरत नहीं है। आप कहीं भी क्यों न हों, यदि आप खादी नहीं पहनते हैं तो अब कुछ रुपये उसमें लगाकर खादी खरीद लीजिए। इससे आप सारे भारतके खादी-भण्डारोंमें जमा खादीकी खपतमें मदद पहुँचायेंगे। यदि आपके पास काफी खादी हो और आप खादी खरीदना न चाहें, लेकिन आपके पास देने को कुछ पैसा हो तो आप वह पैसा चरखा-संघको दान स्वरूप दे दीजिए। उसका उपयोग खादी तैयार करनेमें किया जायेगा। यदि आपके पास अवकाशके कुछ क्षण हों (और कौन है जिसके पास ऐसे कुछ क्षण न हों?) तो आप उनका उपयोग चरखा चलाने में कीजिए और कता हुआ सूत अ॰ भा॰ चरखा संघको भेज दीजिए। यदि आपके कुछ ऐसे मित्र हों जिनपर आपका असर हो तो आप उनसे ये सब या इनमें से कोई भी काम करनेके लिए कहें, जिनका उल्लेख मैंने अभी किया है। यह स्मरण रखिए कि खादी-कार्यमें योग देकर आप गरीब लोगोंसे अपना

  1. देखिए "सत्याग्रह सप्ताह में आंशिक उपवास", ४-४-१९२६।
  2. देखिए शीर्षक २६९ की पाद-टिप्पणी।