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२७०. पत्र: देवदास गांधीको

साबरमती आश्रम
शनिवार, चैत्र बदी [५][१] [३ अप्रैल, १९२६]

चि० देवदास,

तुम्हारा पत्र मिला। रामदासने भी अपना पत्र दिखाया। उसके बारेमें तो रामदास ही लिखेगा। तुम्हारा रह जाना निश्चित हुआ, यह ठीक ही है। सिद्धैया काकाके पास रहता है। उसे तुरन्त वापस आना है। इसलिए आज स्वामी उसे पत्र लिख रहा है। यह पत्र सिद्धैयाको सोमवारको मिलेगा। इसलिए मंगल-बुधतक प्रभुदासको यहाँ आ जाना चाहिए। उसके लिए क्या करना चाहिए, इसपर तो प्रभुदासके यहाँ आनेके बाद ही विचार किया जायेगा। उसकी तबीयतमें कोई भारी बिगाड़ हुआ हो, ऐसी बात तो नहीं है। भले-चंगे व्यक्तिकी भी तबीयत वहाँ अच्छी न रहे, इसमें तो भले-चंगे व्यक्तिका ही दोष होगा न? और तुम्हें कोई बीमारोंमें तो नहीं गिना जा सकता। नीमका रस पीना शुरू किया, यह ठीक हुआ। यह आवश्यक है कि मानसिक व्याधि तनिक भी न भोगी जाये। वह जर्मन महिला हेलेन हाउसडिंग आना चाहती थी। उसे अनुमति मिल चुकी है। इसलिए जान पड़ता है कि वह अब महीने-भरमें यहाँ पहुँच जायेगी। मालूम होता है कि यह महिला मीराबाईकी जोड़की है। पंचगनीमें रहनेके लिए उपयुक्त जगहकी खोज शुरू कर दी है। मथुरादासको अलग से पत्र नहीं लिखता।

गुजराती प्रति (एस॰ एन॰ १९४१७) की माइक्रोफिल्मसे।

२७१. पत्र: ठाकोरलालको

साबरमती आश्रम
शनिवार, चैत्र बदी [५][२] [३ अप्रैल, १९२६]

भाई ठाकोरलाल,

तुम्हारा पत्र मिला। मैं देखता हूँ कि तुम्हें पत्रोंकी मार्फत सलाह देना या तुम्हारा मार्ग प्रदर्शन करना सम्भव नहीं है। तुम अपना अभ्यास छोड़कर आश्रम में रहो, यह तो में कदापि नहीं चाहता। जब तुम्हें छुट्टियाँ हों तब तुम यहाँ आ जाओ तो हम बात कर सकते हैं और इससे कदाचित् तुम्हें कुछ आश्वासन मिलेगा। खादी- भण्डारोंमें रेशमका माल रखने में कुछ दिक्कतें आईं, इसलिए उसे हटाना पड़ा।

गुजराती प्रति (एस॰ एन॰ १९४१८) की माइक्रोफिल्मसे।

  1. देखिए पिछले शीर्षककी पाद-टिप्पणी।