२६५. पत्र: मानसिंह जसराजको
आश्रम
३ अप्रैल, १९२६
आपका पत्र मिला। आपका अनुमान बिलकुल सही है। मेरे कोई पुत्री नहीं है और यह महिला तो इस तरहकी धूर्तता जगह-जगह ही कर रही है। 'नवजीवन' में एक बार तो इसके बारेमें लिखा जा चुका है; फिर लिखूँगा।
मोहनदास गांधीके वन्देमातरम्
मार्फत श्रीयुत शामलभाई बाबरभाई
अदन कैम्प
गुजराती पत्र (एस॰ एन॰ १९८९०) की माइक्रोफिल्मसे।
२६६. पत्र: नरभेराम पो॰ मेहताको
आश्रम
३ अप्रैल, १९२६
ऋषि दयानन्दजीकी पुस्तकके बारेमें मैं जो लिख गया हूँ, उससे ज्यादा कुछ कहने की कोई इच्छा नहीं है।
२. मासिक धर्म स्त्रियोंके लिए मासिक व्याधि है। इस समय उसे अत्यन्त शान्तिको आवश्यकता होती है; ऐसे समय कामी पुरुषका संग उसके लिए भयंकर वस्तु है।
३. यही कारण प्रसूताको भी लागू होता है और उसे कमसे-कम २० दिन आराम दिया जाता है, इस रिवाजको मैं बहुत अच्छा मानता हूँ। लेकिन जिनका उससे निकटतम सम्बन्ध है, ऐसी स्त्रियाँ भी उसे नहीं छू सकतीं, यह तो अतिशयता है।
४. आचार, अर्थात् जो मानो सो करो—आचारकी यह व्याख्या मुझे ठीक मालूम होती है।