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२६२. पत्र: धर्मवीरको

आश्रम
३ अप्रैल, १९२६

भाई धर्मवीरजी,

आपका पत्र मिला। चित्तकी एकाग्रता अभ्याससे ही मिल सकती है।

(१) शुभ और इष्ट विषयमें लीन होनेसे एकाग्रताका अभ्यास हो सकता है। जैसे कोई मरीजोंकी सेवामें एकाग्र बनते हैं, कोई अन्त्यजोंकी सेवामें, कोई चरखा चलाने में और खद्दर प्रचारमें।

(२) श्रद्धापूर्वक हार्दिक भावसे रामनामके उच्चारणसे एकाग्र होते हैं।

(३) कोई योगादिकी क्रियासे।

आपका,
मोहनदास गांधी

श्री धर्मवीर


वैदिक पुस्तकालय


लाहोर रोड, लाहोर।

मूलपत्र (एस॰ एन॰ १९८९४) की माइक्रोफिल्मसे।

२६३. पत्र: रामरीष ठाकुरको

आश्रम
३ अप्रैल, १९२६

महोदय,

आपका पत्र मिला है। मौलाना शौकतअलीने अपना सूत चंद महीनोंका भेजा है, और जो बाकी है वह भी मिल जानेकी उमीद है। जो अपना सूत नहि भेजेंगे वे, कोई भी हो, आखिरतक सदस्य नहीं रह सकेंगे। मो॰ महमदअलीका सूत नहीं आया है, इसलिये वह सदस्य भी नहीं है।

आपका,
मोहनदास गांधी

श्री रामरीष ठाकुर


नं॰ २२, गोएनका लेन, बडा बाजार


कलकत्ता

मूलपत्र (एस॰ एन॰ १९८९५) की माइक्रोफिल्मसे।