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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जीवन बिताने लगेगी। इसीलिए हम पूर्ण ब्रह्मचर्यके बादकी अवस्थाकी—गृहस्था—श्रमकी—बात करते हैं।

३. निकट भविष्य में मेरे केरल जानेकी ज्यादा सम्भावना नहीं है। आपका यह खयाल गलत है कि अस्पृश्यों और अनुपगम्योंको अपने जीवनमें पवित्रता लानेकी शिक्षा नहीं दी जाती। उन्हें इसकी शिक्षा ही नहीं दी जा रही है, बल्कि वे इसपर आचरण भी कर रहे हैं।

४. मैं अंग्रेजीको इस देशसे पूरी तरह निकाल नहीं देना चाहता, लेकिन अगर आप हरएक प्रान्तके लाखों-करोड़ों लोगोंको ध्यानमें रखकर सोचेंगे तो पायेंगे कि उन लोगोंके लिए अंग्रेजी कभी भी शिक्षाका माध्यम नहीं हो सकती। हिन्दी प्रान्तोंके आपसी व्यवहारकी भाषा होनी चाहिए और अंग्रेजी भारत तथा दुनियाके दूसरे देशोंके बीच होनेवाले व्यवहारकी भाषा रहनी चाहिए। इसलिए समय और महत्त्वकी दृष्टिसे इसका स्थान तीसरा है।

५. मैं नहीं समझता कि भारतमें अथवा कहीं भी केवल एक ही धर्म हो सकेगा। लेकिन, एक-दूसरेके धर्मके प्रति हार्दिक श्रद्धा और सहिष्णुता जरूर होगी और होनी चाहिए।

६. हर व्यक्तिके नियमित रूपसे कातनेपर भी हाथ-कता सूत बेकार जमा नहीं होगा, बल्कि तब सबके लिए पर्याप्त सूत होगा और सो भी इतनी कम कठिनाई और खर्चमें जिसकी दुनियाने अबतक कल्पना नहीं की है। और अगर सूत फालतू हो भी जायेगा तो हम, हर व्यक्ति कताईपर जितना समय लगाता है, उसे मजेमें कम कर सकते हैं।

७. मैंने जनताके सामने ऐसा कुछ नहीं रखा है, जिसे साधारणसे-साधारण व्यक्ति भी न कर सके। उदाहरणके लिए, हर व्यक्ति चरखा चलाये, इसमें क्या कठिनाई है? अथवा इन बातोंमें ही क्या कठिनाई है कि वह विदेशी वस्त्रोंका त्याग कर दे, मद्य-पान छोड़ दे, हिन्दू-मुस्लिम एकतामें विश्वास करे और उसके लिए काम करे, अस्पृश्यको अपना भाई माने, अपनी भाषाके अलावा हिन्दी भी सीखे?

८. आहारमें अन्न, फल, दूध और काम न चले तो बहुत थोड़ा मसाला लेना चाहिए। अधिक स्निग्ध पदार्थ नहीं लेना चाहिए। मात्रा और किस्मको ध्यानपूर्वक प्रयोग-परीक्षा करके निर्धारित करना चाहिए।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत पी॰ गोविन्दन कुट्टी मेनन


पंडारथिल हाउस
पुदुक्कोड
बरास्ता—ओट्टापालम


दक्षिण मलाबार

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९४१५) की फोटो-नकलसे।