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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

और जो लोग आपपर निर्भर हैं, उनके जीवनको यथासम्भव अधिकसे-अधिक सादा बनाना चाहिए।

हनुमन्तरावकी विधवाको लिखे पत्रमें मैंने कहा है कि यदि वे आश्रम में रहनेके लिए आना चाहें तो उनका स्वागत किया जायेगा और आश्रमके लोग यथासम्भव उनका ध्यान रखेंगे। कृपया समझ लें कि यह सुझाव औपचारिक नहीं है। इसलिए यदि सम्भव हो तो इसे स्वीकार करने में तनिक भी संकोच नहीं होना चाहिए।

आप यह तो नहीं ही चाहते होंगे कि मैं आपकी पुस्तक पढ़े बिना उसकी भूमिका लिख दूँ?

हृदयसे आपका,

श्रीयुत डी॰ वी॰ रामस्वामी
विजगापट्टम

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९४१२) की माइक्रोफिल्मसे।

२५९. पत्र: आर॰ डी॰ सुब्रह्मण्यम्को

साबरमती आश्रम
३ अप्रैल, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र और आपका भेजा हुआ सूतका पैकेट मिला। अब इस सूतकी जाँच हो रही है। मैं आपके और भी सूत भेजने की राह देखूँगा।

मैं समझता हूँ मेरे पिछले पत्रमें ऐसी कोई बात नहीं है जिसका यह अर्थ निकाला जा सके कि सूत २० अंकसे ज्यादा का नहीं होना चाहिए। खयाल यह था कि सूत २० से कम अंकका न हो। आपने जो सूत भेजा है, वह सब अगर ५५ अंकका हो तो यह और भी खुशी की बात होगी।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत आर॰ डी॰ सुब्रह्मण्यम्


वेस्ट श्रीरंगप्पालयम् रोड एक्सटेंशन


सेलम

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९४१३) की माइक्रोफिल्मसे।