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२५४. पत्र: देवचन्द पारेखको

साबरमती आश्रम
शुक्रवार [२ अप्रैल, १९२६][१]

भाई देवचन्दभाई,

तुम्हारा पत्र मिला। १३ तारीखको दो बजे यहाँ समितिकी[२] बैठक होनेका समाचार जाना। मैं तैयार रहूँगा।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती पत्र (जी॰ एन॰ ५७११) की फोटो-नकल से।

२५५. पत्र: हरबर्ट ऐंडर्सनको[३]

साबरमती आश्रम
३ अप्रैल, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। मैं 'यंग इंडिया' के बारेमें पूछताछ कर रहा हूँ। यह सच है कि ग्राहकोंसे जो भी चन्दे आते हैं, उनका हिसाब तीन-तीन महीने या एक-एक साल बाद किया जाता है; नहीं तो हिसाब-किताब रखना बहुत मुश्किल हो जाये। इसलिए सबसे अच्छा तरीका तो यह है कि १ मार्चसे चन्दा देकर 'आत्मकथा' से शुरू होनेवाले पिछले अंकोंको प्राप्त कर लिया जाये। मैं इसके साथ या तो मद्य-निषेध सम्मेलनकी मैंने जो आलोचना की है, उसकी एक प्रति अथवा अगर सम्भव हुआ तो 'यंग इंडिया' की वह प्रति भेज रहा हूँ, जिसमें आलोचना छपी है।

अब आपके पत्रके अन्तिम अनुच्छेदके सम्बन्धमें। आपने जिस मद्य-निषेध आन्दोलन-की चर्चा की है, धरना देना उस आन्दोलनका मूल तत्त्व था। श्री एन्ड्रयूजने असम में जो जाँच की थी, उसकी रिपोर्टपरसे आपने देखा होगा कि यह आन्दोलन अत्यन्त प्रतिकूल परिस्थितियोंमें किया गया था; यहाँतक कि लोग इसका विरोध भी कर रहे थे, कुछ मन-ही-मन और कुछ खुल्लम-खुल्ला। अन्तिम और स्थायी उपाय पूर्ण मद्य-निषेध ही है, क्योंकि शराबीको एक प्रकारका रोगी ही समझना चाहिए, जो

  1. डाककी मुहर से।
  2. काठियावाड़ राजनीतिक परिषद्की कार्य-समिति।
  3. ३०-३-१९२६ को लिखे हरबर्ट ऐंडर्सनके पत्रके उत्तरमें। इसमें हरबर्ट ऐंडर्सनने अपनी त्रैमासिक पत्रिका प्रोहिबिशनके प्रथम अंकके लिए गांधीजीसे सन्देश देनेका अनुरोध किया था।