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२५३. पत्र: एन॰ एस॰ वरदाचारी और एस॰ वी॰ पुणताम्बेकरको

साबरमती आश्रम
२ अप्रैल, १९२६

प्रिय मित्र,

अब आप दोनोंकी संयुक्त रचनाका[१]पुनरीक्षण किया जा रहा है और मुझे यह देखकर दु:ख हुआ है कि उसमें बहुत ज्यादा त्रुटियाँ हैं। आपने प्रूफ-संशोधकसे यह अपेक्षा की है कि आप अपनी रचनामें जिन पुस्तकों और प्रमाणोंको उद्धत करना चाहते हैं, उन्हें ढूँढ़कर वही भरे। पुस्तकोंका कैसे पता चले? जहाँ आपने पृष्ठ संख्या नहीं दी है, वहाँ कोई अपेक्षित अवतरणोंको कैसे ढूंढ़ सकता है? क्या आप नहीं समझते कि खुद आपको ही ये अवतरण सुलेखमें उतारकर देने चाहिए थे तथा सन्दर्भ भी भर देने चाहिए थे? और फिर आपने पाद-टिप्पणियों में सन्दर्भ देकर अपने सभी कथनोंके प्रमाण भी प्रस्तुत नहीं किये हैं। व्यक्तिवाचक संज्ञाएँ भी इस तरह लिखी गई हैं, मानो वे साधारण शब्द हों। इससे उनका पता लगाना बहुत मुश्किल है। आप दोनोंके निबन्धोंके एकीकरणका काम भी जल्दीमें किया गया जान पड़ता है। इन त्रुटियोंके कारण छपाई लगभग रुकी पड़ी है। मुझे समझमें नहीं आता कि मेरे सामने जो कठिनाई है, उसका हल मैं किस तरह निकालूँ। मैं सन्दर्भ और प्रमाण कहाँसे प्राप्त करूँ? क्या आप इस कठिनाईको दूर करनेकी कोई राह सुझा सकते हैं? यदि आप दोनोंमें से कोई यहाँ आ जाये और जहाँ जो-कुछ भरना है, भर दे तो काम जल्दी हो सकेगा। अथवा यदि आप चाहें तो मैं आप दोनोंमें से किसी एककी रचनाकी एक प्रति भेज दूँ। आप दोनोंको यह पत्र आपके अलग-अलग पतोंपर डाला जा रहा है।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत एन॰ एस॰ वरदाचारी


इरोद
श्रीयुत पुणताम्बेकर
हिन्दू विश्वविद्यालय


बनारस

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९४११) की माइक्रोफिल्मसे।

  1. उक्त दोनों सज्जनों द्वारा लिखी हैंड स्पिनिंग एण्ड हैंड वीविंग।