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२४९. पत्र: शाह जमील आलमको

साबरमती आश्रम
२ अप्रैल, १९२६

आपका पत्र मिला। शुद्ध हृदय हो तो मनुष्य सत्यको जान और देख सकता है। इसलिए हम सबको हृदयकी पवित्रताकी ओर ध्यान देना चाहिए। शेष सब अपने-आप आ जायेगा।

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ११०५७) की फोटो-नकलसे।

२५०. पत्र: ए॰ जोजेफको

साबरमती आश्रम
२ अप्रैल, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला, जिसके साथ 'हिन्दू' और श्री सत्यमूर्तिको लिखे आपके पत्रोंकी प्रतियाँ भी संलग्न हैं। 'हिन्दू' की वे प्रतियाँ भी मेरे पास हैं, जिनमें वे विज्ञापन हैं, जिनकी कि आपने चर्चा की है। मैं तो पूर्ण रूपसे इस मतका हूँ कि जो चीजें राष्ट्रके लिए हानिकर हैं, लोकहितको ध्यान में रखकर चलनेवाले पत्रोंको उनके विज्ञापन बिलकुल नहीं लेने चाहिये। लेकिन ऐसे मामलोंमें हस्तक्षेप करना मेरे लिए बहुत मुश्किल है। मैं तो 'यंग इंडिया' के स्तम्भोंमें अपना मत ही व्यक्त कर सकता हूँ। और ऐसा मैं समय-समयपर करता रहता हूँ जैसा कि आपने देखा होगा, मैंने अभी हालमें ही ऐसे अनैतिक विज्ञापनोंके[१] बारेमें लिखा है।

हृदयसे आपका,

श्री ए० जोजेफ


५१९, सिल्वर स्ट्रीट
सेंट टॉमस माउंट


मद्रास

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १२१६२) की फोटो-नकलसे।

  1. देखिए "स्वत्वाधिकारका आग्रह रखें", २५-३-१९२६।