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२४५. पत्र: सुधांशु कुमारी घोषको

आश्रम
१ अप्रैल, १९२६

प्रिय बहन,

आपका पत्र मिला। यह सुनकर बड़ा दुःख हुआ कि शरत बाबू उपवास कर रहे हैं। मैं तो सोचता हूँ कि यह बिलकुल गलत बात है। और मुझे उम्मीद है कि आपको यह पत्र मिलनेसे बहुत पहले ही वे अपना उपवास तोड़ चुके होंगे।

आपका,

श्रीमती सुधांशु कुमारी घोष
बारीसाल

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९८८७) की माइक्रोफिल्मसे।

२४६. पत्र: किशोरलाल मशरूवालाको

आश्रम
बृहस्पतिवार, चैत्र बदी ३ [१ अप्रैल, १९२६]

चि० किशोरलाल,

गोमतीकी[१] खबर मुझे मिलती ही रहती है। मच्छरोंके लिए क्या मच्छरदानीका उपयोग नहीं किया जा सकता? वहाँ खुराक कम हो गई, यह आश्चर्यजनक बात है। हम अनेक विदेशी वस्तुओंका उपयोग तो करते ही हैं। तो लीठीया-वाटरका उपयोग करके देखना; यह एक झरनेका पानी है। बड़ो दादा हमेशा इसका उपयोग करते थे, एन्ड्रयूजने मुझसे इसे पीनेका बहुत आग्रह किया था। लेकिन मुझे जरूरत नहीं जान पड़ी, इसलिए नहीं पिया। किन्तु गोमती उसका उपयोग करके देखे तो ठीक होगा। वहाँ भूख कम हो गई है, उसका कारण तो वहाँका पानी ही होगा। तुमने नासिक के पिंजरापोलके बारेमें लिखा है। यह पिंजरापोल मेरे ध्यानके बाहर नहीं है। इसके व्यवस्थापक मुझसे मिल गये हैं। दूसरी जगह कहीं भी सत्याग्रहाश्रमकी शाखा खोलनेका तो विचार ही नहीं था; लेकिन जमनालालजीका यह सुझाव अवश्य था कि किसी अच्छे प्रदेशमें, जहाँ रोगी रह सकते हों, एक जगह ली जानी चाहिए और इस सन्दर्भ में नासिकके बारेमें विचार अवश्य किया गया था। यदि ऐसी जगह हम ऐसे ही

  1. किशोरलाल मशरूवालाकी पत्नी।