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२४२. पत्र: रेवरेंड जॉन एम॰ डारलिंगटनको

साबरमती आश्रम
१ अप्रैल, १९२६



प्रिय भाई,

पत्रके लिए धन्यवाद। मुझे आपके साथ अपनी मुलाकात याद है।

आपने जिस घटनाकी चर्चा की है, वह कभी हुई ही नहीं है। मैं नहीं जानता कि उसके बारेमें खबर कहाँ प्रकाशित हुई है। यद्यपि ईसा मसीहके उपदेशोंके प्रति मेरे मन में अत्यन्त श्रद्धा है, फिर भी जैसा विश्वास रखनेकी बात मेरे बारेमें कही गई है, मेरा वैसा कोई विश्वास कभी नहीं रहा है।

हृदयसे आपका,

रेवरेंड जॉन एम॰ डारलिंगटन
१४-२, सदर स्ट्रीट, कलकत्ता

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९४०६) की फोटो-नकलसे।

२४३. पत्र: एस॰ वी॰ वेंकटनरसय्यनको

साबरमती आश्रम
१ अप्रैल, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। मैं नहीं समझता कि किसी व्यक्तिके लिए अन्य धर्मोके प्रति सहिष्णुताका भाव रखनेके लिए अपने धर्मको भूल जाना आवश्यक है। सच तो यह है कि जब कोई व्यक्ति अपने धर्मको भूल जाता है तब दूसरे धर्मोके प्रति उसकी सहिष्णुताका मूल्य नहीं रह जाता। मेरे विचारसे, सहिष्णुताका तकाजा यह है कि हम दूसरोंके धर्मके प्रति वैसा ही आदर भाव रखें, जैसा कि हम अपने धर्मके प्रति औरोंसे रखनेकी अपेक्षा करते हैं।

मेरा तो मत है कि किसी मध्यस्थकी सहायताके बिना ही ईश्वरतक पहुँचा जा सकता है।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत एस॰ वी॰ वेंकटनरसय्यन,


७, मिलर रोड


किलपॉक, मद्रास

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९४०७) की फोटो-नकलसे।