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२४०. पत्र: बिनोदबिहारी दत्तको

साबरमती आश्रम
१ अप्रैल, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र और 'टाउन प्लानिंग इन एनशिएंट इंडिया' (प्राचीन भारतमें नगर-योजना) नामकी पुस्तक मिली। इनके लिए आपको धन्यवाद।

मन तो बहुत चाहता है कि मैं आपको यह वचन दूँ कि आपकी पुस्तकको जल्दी ही पढ़ लूँगा, लेकिन ऐसा करना सचमुच सम्भव नहीं है। अभी तो मेरे पास तत्काल निपटानेके लिए बहुत सारे कार्य पड़े हुए हैं और इन्हीं में मेरा सारा समय लग जाता है। लेकिन मैं आपको किताबको अपने सामने ही रखूँगा, ताकि जब कभी मुझे क्षण-भरका भी समय मिले तो मैं इसकी विषयवस्तुके बारेमें कुछ जान सकूँ।

हृदयसे आपका,

प्रोफेसर बिनोदबिहारी दत्त


४-१ ए, बाधाप्रसाद लेन


कलकता

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९४०४) की माइक्रोफिल्मसे।

२४१. पत्र: जंगबहादुर सिंहको

साबरमती आश्रम
१ अप्रैल, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र और कतरन मिली। मेरे विचारसे आपके लिए यह ज्यादा अच्छा होगा कि आप लालाजी और पण्डित सन्तानम्से मिलें तथा उनके सहयोग से एक सार्वजनिक अपील निकालें। इतना तो मैं निश्चयपूर्वक कह सकता हूँ कि संस्थाको बने रहना चाहिए, लेकिन यह कैसे किया जाये, यह बात स्थानीय परिस्थितियोंपर निर्भर करती है। निःसन्देह, लोग जानना चाहेंगे कि लालाजी और पण्डित सन्तानम् क्या कहते हैं।

हृदयसे आपका,

श्री जंगबहादुर सिंह


सम्पादक "नेशन"


रेलवे रोड, लाहौर

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९४०५) को माइक्रोफिल्मसे।