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२३८. पत्र : दूनीचन्दको

साबरमती आश्रम
१ अप्रैल, १९२६

प्रिय लाला दूनीचन्द,

आपका पत्र मिला। यदि मैं स्वतन्त्र व्यक्ति होता तो मैं आपके निमन्त्रणको सहर्ष स्वीकार कर लेता। परन्तु ऐसी बात नहीं है। मेरे किसी पर्वतीय प्रदेशमें जानेकी व्यवस्थाका सारा प्रबन्ध श्री घनश्यामदास बिड़ला और श्री जमनालालजी बजाजने अपने हाथमें ले लिया है तथा मेरा खयाल है कि वे मसूरीमें पहले ही कुछ व्यवस्था कर चुके हैं। इसलिए, आप कृपया मुझे क्षमा करेंगे। मुझे उम्मीद है कि श्रीमती दुनीचन्द चरखेके सम्बन्ध में किये गये अपने वादेको निभा रही हैं।

हृदयसे आपका,

लाला दूनीचन्द, वकील
अम्बाला सिटी

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९४०२) की माइक्रोफिल्मसे।

२३९. पत्र : एस० पी० एन्ड्रयूज-ड्यूबको

साबरमती आश्रम
१ अप्रैल, १९२६

प्रिय ड्यूब,

तुम्हारा पत्र मिला। मैं नहीं जानता कि मसूरीमें मेरे रहने की कहाँ व्यवस्था की गई है। सारी व्यवस्था सर्वश्री बिड़ला और जमनालालजी बजाज कर रहे हैं। लेकिन मुझे उम्मीद है कि मैं जब मसूरी पहुँचूँगा तब मैं आपको वहाँ पाऊँगा। तभी आप मुझे अपने दुःखद अनुभवोंके बारेमें सब-कुछ बताइएगा।

रामदास अमरेलीसे अभी-अभी यहाँ आया है। मैं उसे आपका पत्र पढ़ा रहा हूँ।

हृदयसे आपका,

श्री एस० पी० एन्ड्रयूज डयूब

सवेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी

लखनऊ

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९४०३) की माइक्रोफिल्मसे।