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पत्र: डॉ० पॉल लिडको

धर्मके रूप में स्वीकार नहीं करते, उन्हें अहिंसक नहीं बनाया जा सकता। अहिंसाका प्रसार इसके पक्ष में धीरे-धीरे लोकमत तैयार करनेपर निर्भर करता है। व्यक्तिगत रूपसे मुझे इस बातका यकीन है कि ऊपरसे भले ही दिखता न हो, लेकिन अहिंसाकी भावनाका दिन-प्रतिदिन प्रसार होता जाता है।

हृदयसे आपका,

श्री एफ० ए० बुश

मॉर्डेन सरे

इंग्लैंड

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १२४५६) की फोटो-नकलसे।

२३७. पत्र : डॉ० पॉल लिंडको

साबरमती आश्रम
१ अप्रैल, १९२६

प्रिय मित्र,

मुझे आपका दिलचस्प और बोधप्रद पत्र मिला। मैं आपकी इस बातसे तो पूरी तरह सहमत हूँ कि लेखक जिस अर्थको ध्यान में रखकर शब्दोंका प्रयोग करता है, वह अर्थ पाठकोंके सामने स्पष्ट होना चाहिए, किन्तु साथ ही मैं ठीक-ठीक जानता हूँ कि असहयोग आन्दोलनके विफल होनेका कारण यह नहीं था कि लोग अहिंसा और उसके फलितार्थोको समझ नहीं पाये, बल्कि उसकी वजह यह थी कि यद्यपि वे सब-कुछ जानते थे, फिर भी वे उसके अनुसार आचरण नहीं कर पाये।

हृदयसे आपका,

डॉ० पॉल लिंड,

हॅम्बर्ग
ल्यूबेकरस्ट्रास

(जर्मनी)

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १२४५७) की फोटो-नकलसे।