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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नवयुवकों की जरूरत खुद भारतमें ही है तब उन्हें बाहर जाने के लिए राजी करना बहुत कठिन कार्य है।

हृदयसे आपका,

श्री बुद्ध

पेन विंडसर फॉरेस्ट
वेस्ट कोस्ट डेमेरारा

ब्रिटिश गियाना

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १२४५५) की फोटो-नकलसे।

२३६. पत्र : एफ० ए० बुशको

साबरमती आश्रम
१ अप्रैल, १९२६

प्रिय मित्र,

पत्रके लिए धन्यवाद। यह बिलकुल सच है कि भारतीय जो-कुछ कहते हैं, उसकी अकसर गलत रिपोर्ट दी जाती है और भारत सम्बन्धी चीजोंको गलत रूपमें पेश किया जाता है, तथापि यहाँ आपने जिस प्रसंगकी चर्चा की है, उसमें तो कांग्रेस अध्यक्षने[१] जो-कुछ कहा उसकी सही रिपोर्ट ही दी गई है। उन्होंने राष्ट्रीय नागरिक सेना तैयार करने की वकालत अवश्य की थी।

मैं एक सुधारक हूँ, जो चाहता है कि सारा संसार अहिंसाको अन्तिम धर्मके रूपमें स्वीकार कर ले; तथापि मैं ऐसे मंचोंसे भी बोलनेसे नहीं हिचकिचाता जहाँ स्पष्ट शब्दों में हिंसाकी सीख दी जाती है। किन्तु इसका मतलब यह नहीं कि इस सीखसे में भी सहमत हूँ; बल्कि जिस प्रकार संसारमें रहते हुए भी संसारमें हो रही तमाम हिंसासे मेरा कोई सरोकार नहीं है, उसी प्रकार उस सीखसे भी मेरा कोई वास्ता नहीं है। मैं मानता हूँ कि मेरे लिए इतना ही यथेष्ट है कि मैं अपने आपको हर प्रकारकी मानसिक और शारीरिक हिंसासे अलग रखूँ और प्रसंग आनेपर उसके प्रति अपनी असहमति व्यक्त कर दूँ।

मुझे नहीं मालूम कि आप यह जानते हैं अथवा नहीं कि कांग्रेसका सिद्धान्त "शान्तिपूर्ण और वैध साधनों द्वारा पूर्ण स्वराज्य प्राप्त करना है।" इसलिए हिंसाका राष्ट्रीय कार्यक्रम में पूर्णतथा त्याग किया गया है। लेकिन इसके साथ ही मुझे यह भी स्वीकार करना चाहिए कि हिंसाके पूर्ण त्यागका मतलब यह नहीं है कि लोग कांग्रेस-मंचसे रक्षाके निमित्त राष्ट्रीय सेना बनाये जानेकी बात नहीं कर सकते। मेरे विचारसे राष्ट्रीय सेनाको कोई जरूरत नहीं है, लेकिन जो लोग अहिंसाको अन्तिम

 
  1. श्रीमती सरोजिनी नायडू।