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२३२. बिहार विद्यापीठ

मैं पाठकोसे कहूँगा कि वे श्री राजगोपालाचारीके निम्नलिखित भाषणको[१] अवश्य पढ़ें। उन्हें विद्यापीठके वार्षिक दीक्षान्त समारोहमें बोलनेके लिए विशेष रूपसे आमन्त्रित किया गया था।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १-४-१९२६

२३३. टिप्पणियाँ

बंगालका अनुकरणीय उदाहरण

खादी-प्रेमियोंने इस मनोरंजक तथ्यकी ओर पता नहीं ध्यान दिया है या नहीं कि समस्त प्रान्तों में एक मात्र बंगाल ही ऐसा है जिसने अपनी खादीकी बिक्री के लिए बंगालसे बाहरके ग्राहकोंपर निर्भर रहने से लगातार इनकार किया है। यद्यपि बंगालमें खादीका उत्पादन लगातार बढ़ता रहा है, फिर भी वहाँके लोगोंने अपनी समस्त खादी बंगालमें ही बेची है। इस भारी समस्याको सुलझानेका सबसे उचित तरीका यही है। देशबन्धु जब दार्जिलिंग में थे तब मुझसे कहा करते थे कि बंगालसे इस बातकी बड़ी आशा है कि वह अन्य कई विषयोंकी तरह खादीके मामलेमें भी अन्य प्रान्तों से आगे रहेगा, क्योंकि बंगालके मध्यम वर्गके लोग लोक-हितके मामलोंमें बहुत दिलचस्पी लेते हैं। उन्होंने कहा कि मुझे मध्यम वर्गके जरिये जन-साधारणतक पहुँच पानेकी आशा है, क्योंकि इस वर्गके लोग न केवल सबसे आगे बढ़कर खादी पहनेंगे, बल्कि सबसे पहले वे ही स्वेच्छासे सूत कातेंगे। वे आशा करते थे कि मध्यम वर्गके प्रभावसे ही खादी और चरखेका जनसाधारणमें प्रसार होगा। यह कार्य जितने बड़े पैमानेपर आज बंगालमें होता दीख रहा है, उतने बड़े पैमानेपर और किसी प्रान्तमें नहीं।

बंगालमें खादीके कार्यका संगठन करनेवाली दो प्रमुख संस्थाएँ हैं: एक खादी प्रतिष्ठान और दूसरी अभय आश्रम। इन दोनों संस्थाओंने किसी-न-किसी तरह यह निश्चय कर लिया है कि वे बंगालकी खादी बंगालसे बाहर नहीं बेचेंगी। इसका परिणाम यह है कि वे वैसी ही खादी बुनवाती हैं, जैसी खादीकी जरूरत बंगालके मध्यम वर्गको होती है। इसलिए वे समय-समयपर अपने कामोंका जायजा ले पाती हैं और फलतः उन्हें अपने उत्पादनका स्तर ऊँचा रखना होता है। उनके उत्पादन केन्द्र जितने सुव्यवस्थित हैं, उतने ही सुव्यवस्थित उनके बिक्री-विभाग भी हैं। मैं समझता हूँ कि यदि समस्त भारतके कार्यकर्ता बंगालके उदाहरणका अनुकरण करें और अपनी

 
  1. भाषणका अनुवाद यहाँ नहीं दिया जा रहा है।