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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मेरा राजनीतिक कार्यक्रम अत्यन्त सीधा-सादा है। अगर भेंट भेजनेवाले इन सज्जनोंने अस्पृश्यता और एकताके साथ चरखेका भी उल्लेख कर दिया होता तो मेरे राजनीतिक कार्यक्रमका चित्र लगभग पूरा हो जाता। मेरा यह विश्वास दिन-प्रतिदिन दृढ़से दृढ़तर होता जा रहा है कि हम सच्ची स्वतन्त्रता आन्तरिक प्रयत्नोंसे, अर्थात् आत्मशुद्धि द्वारा और अपनी सहायता आप करके, और इसलिए सत्य और अहिंसाका पूरी तरह पालन करके ही प्राप्त कर सकते हैं। इसमें कोई सन्देह नहीं कि इस सबके पीछे सविनय अवज्ञा तो है ही। सविनय अवज्ञा नहीं कहती कि उसकी मददके लिए कोई एक पैसा भी दे, उसे वास्तवमें एक भी पाईकी जरूरत नहीं है। अगर उसे किसी चीजकी जरूरत है, अगर वह किसी चीजकी माँग करती है तो वह है ऐसी आस्थासे युक्त मजबूत हृदय, जो किसी भी खतरेसे विचलित न हो और जो कठिनसे-कंठिन परीक्षाके समय अधिकसे-अधिक तेजोमय हो उठे। सविनय अवज्ञा कष्ट-सहनका ही एक डरावना नाम है। लेकिन अगर लोग किसी चीजके शुभ पक्षको ठीक-ठीक समझना चाहते हों तो इसके लिए पहले उसके डरावने पहलूको समझना अकसर अच्छा होता है। अवज्ञाका अधिकार हर मानवको है और जब वह विनय, या दूसरे शब्दोंमें कहें तो, प्रेमसे उद्भूत होती है तब तो वह एक पुनीत कर्त्तव्य बन जाती है। अस्पृश्यता-विरोधी सुधारक बद्धमूल कट्टरताके खिलाफ सविनय अवज्ञा कर रहे हैं। हिन्दू-मुस्लिम एकताके समर्थक अपने मन-प्राणसे उन लोगोंका प्रतिरोध कर रहे हैं जो समाजको वर्गो और सम्प्रदायों में बाँटना चाहते हैं। और जिस प्रकार अस्पृश्यता-निवारण या एकताको स्थापनाके मार्ग में बाधा डालनेवालोंका ऐसा प्रतिरोध किया जा सकता है, उसी प्रकार उस शासनका भी सविनय प्रतिरोध करना चाहिए जो भारतको पौरुषविहीन बना रहा है। यह शासन हर दिन इस विशाल देशके करोड़ों क्षुधार्त्तमानवोंको रौंद रहा है। भावी परिणामोंकी ओरसे आँखें बन्द करके शासक लोग शराब और मादक पदार्थोंके सम्बन्धमें जिस नीतिपर चल रहे हैं, उसे अगर रोका नहीं गया तो देशके श्रमिक निश्चय ही भ्रष्ट हो जायेंगे और राजस्वके इस अनैतिक साधनका उपयोग अपने बच्चोंकी शिक्षा-दीक्षाके लिए करनेवाले हम लोगोंकी याद करके भावी पीढ़ियोंका मस्तक लज्जासे झुक जायेगा। लेकिन, इस भीषण प्रतिरोधकी—कट्टरपंथियों के प्रतिरोधकी, एकताके शत्रुओंके प्रतिरोधकी और सरकारके प्रतिरोधकी—एक शर्त है। यदि इस शर्तको पूरा करना हो तो उसका एक-मात्र रास्ता आत्मशुद्धि और कष्ट-सहनकी कठिन, और आवश्यकता हो तो सुदीर्घ प्रक्रियासे गुजरना है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १-४-१९२६