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२३०. मेरा राजनीतिक कार्यक्रम

कुछ अमेरिकी मित्रोंने १४५ डालरकी भेंटके साथ एक पत्र भेजा है। उसे मैं यहाँ साभार प्रकाशित कर रहा हूँ:

साथके कागजपर हस्ताक्षर करनेवाले लोगोंमें कुछ बोस्टनके रहनेवाले हैं और कुछ पश्चिमी प्रदेशके। वे सब आपके बहुत ऋणी हैं। आपके कार्यके साथ अपने आपको संयुक्त करनेकी इच्छाकी अभिव्यक्ति स्वरूप हम आपको यह बहुत छोटी-सी भेंट भेज रहे हैं। कृपया इसे स्वीकार करें। भेंट बहुत छोटी है, लेकिन इतना कम देने के लिए भी हममें से कुछ लोगोंको सचमुच बहुत त्याग करना पड़ा है। अगर यह रकम आपके कार्य के उन हिस्सोंपर खर्च की जाये जो हमारे मनपर सबसे सीधा प्रभाव डालते हैं—अर्थात् अगर इसे अस्पृश्यता निवारण और हिन्दू-मुस्लिम एकताके हकमें लगाया जाये—तो हमें बड़ी खुशी होगी। प्रोफेसर हॉकिंगकी तरह डोन साइमन्ड्स और कुछ अन्य हस्ताक्षरकर्ताओं को भी लगता है कि वे भारतकी परिस्थितियों के बारेमें इतना कम जानते हैं कि अभी वे आपके राजनीतिक कार्यक्रमको समग्रतः स्वीकार कर लेनेकी स्थितिमें नहीं हैं। लेकिन, मैंने जिस कार्यका उल्लेख किया है, उसमें कुछ सहयोग दो सकनेकी हमारी हार्दिक इच्छा है।
ईश्वर आपके साथ है, और आप भारतके लिए जिस शुभ दिनके अग्रदूत बनकर आये हैं, वह दिन ईश्वर उसे अवश्य दिखायेगा। क्या आप कभी-कभी इस अमेरिकाके लिए भी प्रभुसे प्रार्थना नहीं करेंगे? वास्तवमें इसे प्रभुकी सहायताकी भारतसे कुछ कम आवश्यकता नहीं है।

मैंने उन्हें सूचित कर दिया है कि उनकी इच्छानुसार यह रकम उक्त दोनों कार्योंके निमित्त बराबर-बराबर बाँट दी जायेगी। लेकिन उनका पत्र पढ़कर मेरे मनमें यह खयाल आया कि इस आन्दोलनसे अतिशय सहानुभूति रखनेवाले अतीव सुसंस्कृत अमेरिकी मित्र भी इसको इतना कम समझते हैं, और ऐसा सोचकर मुझे बड़ा दुःख हुआ। इसीलिए, जब अमेरिकी मित्र मुझसे मिलने आते हैं और पूछते हैं कि हम किस तरह भारतकी सहायता कर सकते हैं तब मैं उनसे कहता हूँ कि आप इस आन्दोलनका अध्ययन कीजिए; लेकिन अध्ययन सतही तौरपर या अखबारी खबरोंपर आधारित नहीं होना चाहिए और न दुनियाका दौरा करनेवालोंके तरीकेसे बहुत जल्दी में ही यह अध्ययन करना चाहिए। इसके विपरीत, सब-कुछ ठीक-ठीक देखपरखकर और सभी पक्षोंसे तथ्यपूर्ण जानकारी प्राप्त करके स्थितिको अच्छी तरह समझनेकी कोशिश करनी चाहिए।