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२२८. पत्र : अब्दुल हुसैनको

आश्रम
३१ मार्च, १९२६

भाईश्री अब्दुल हुसैन,

आपका पत्र मिला। आपको जो धर्म-संकट है, उसमें आप स्वयं ही निश्चय कर सकते हैं। मांसाहारका त्याग यदि आपको धर्म-रूप जान पड़े तो आपको माताके प्रेमानुरोधके आगे झुकना न चाहिए। यदि मांसाहारका त्याग एक प्रयोगके रूपमें ही है तो माताके मनको दुखाना पाप कहा जायेगा।

मोहनदास गांधीके वन्देमातरम्

गुजराती पत्र (एस० एन० १९८८५) को माइक्रोफिल्मसे।

२२९. पत्र : वसनजीको

आश्रम
३१ मार्च, १९२६

भाई वसनजी,

आपका पत्र मिला। जहाँ शुद्ध प्रेम होता है, वहाँ अधैर्यको स्थान नहीं होता। शुद्ध प्रेम देहका नहीं, वरन् आत्माका ही हो सकता है। देहका प्रेम तो विषय है। देहमूलक प्रेमकी अपेक्षा तो वर्ण-बन्धन ही ज्यादा महत्त्वकी वस्तु है। आत्म-प्रेम किसी बन्धनकी बाधा नहीं है। लेकिन इस प्रेममें तपश्चर्या होती है और धीरज तो इतना होता है कि यदि मृत्युपर्यंत भी वियोग रहे तो भी कुछ परवाह नहीं। आपका पहला काम अपनी मुश्किलोंको बड़ोंके आगे रखना और वे जो कहें, उसे सुनने और उसपर विचार करनेका है। अन्तमें यम-नियमादिके पालनके द्वारा जब आपका अन्तःकरण शुद्ध हो जाये तब उससे जो आवाज निकले उसे मान देना आपका धर्म है।

मोहनदास गांधीके वन्देमातरम्

गुजराती पत्र (एस० एन० १९८८६) की माइक्रोफिल्मसे।