२२६. पत्र: कान्तिलाल मो० दलालको
आश्रम
३० मार्च, १९२६
भाई कान्तिलाल,
आपका पत्र मिला। मेरी अवश्य यह मान्यता है कि मनुष्य-योनिमें जन्म लेनेके बाद आत्माका पतन पशु, वनस्पति आदि योनियोंमें भी हो सकता है।
मोहनदासके वन्देमातरम्
२९, घांचीनी पोल
गुजराती पत्र (एस० एन० १९८८४) की माइक्रोफिल्मसे।
२२७. पत्र : मोतीबहन चौकसीको
आश्रम
बुधवार, ३१ मार्च, १९२६
चि० मोती,
तुम्हारा यह पहला पत्र है जिसमें में अच्छी लिखावट देखता हूँ। अब इससे कम सुन्दर लिखावटमें जो पत्र आयेंगे उन्हें वापस भेज दूँगा। नाजुकलाल रोगसे बिलकुल मुक्त हो गये हैं, यह जानकर बहुत खुशी हुई है। मैंने लिखावटकी जो प्रशंसा की है, उससे यह मत समझना कि अब उसमें सुधारकी गुंजाइश नहीं है। लेकिन हाँ, मैं यह देख सका हूँ कि आजके पत्र में लिखावटके सम्बन्धमें पूरा प्रयत्न किया गया है।
बापूके आशीर्वाद
गुजराती पत्र (एस० एन० १२१२३) की फोटो-नकलसे।