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पत्र : लक्ष्मीदासको

तुम्हें वह जगह भा गई है और तुम्हारी तबीयत अच्छी रहती है, यह जानकर मुझे खुशी हुई है।

गुजराती प्रति (एस० एन० १९३९७) की फोटो-नकलसे।

२२३. पत्र : प्राणजीवनदास मेहताको

साबरमती आश्रम
मंगलवार, चैत्र वदी २ [३० मार्च, १९२६][१]

भाईश्री ५ प्राणजीवन,

आजकल तो आपका कोई पत्र ही नहीं आता। मैंने कुछ-एक पत्र लिखे थे, सो आपने उनको पहुँचतक नहीं दी। आपको मिले तो होंगे? ऐसा सुनता हूँ कि आपकी तबीयत अच्छी रहती है, इसलिए पत्र न मिलनेकी चिन्ता नहीं करता।

इसके साथ चि० जेकी और नटेसा अथ्यरका पत्र है। यद्यपि मुझे इनके सम्बन्धमें मणिलालके उत्तरको आपको न दिखाने के लिए कहा गया है, तथापि चूँकि मुझे लगता है कि आपको वह पत्र पढ़ना ही चाहिए, इसलिए उसे भी भेज रहा हूँ। भाई मणिलाल जो-कुछ लिखते हैं, उसकी परवाह करनेकी कोई जरूरत नहीं, लेकिन उसके बारे में क्या करना चाहिए।—इसपर विचार करना चाहिए। मैं समझता हूँ कि यदि उन्हें कुछ मासिक वृत्ति दे दी जाये तो वे लड़कों को अपनी इच्छानुसार शिक्षा दे सकें।

मेरा दायें हाथसे लिखना फिलहाल बन्द है और बायें हाथसे लिखने में समय जाता है। अतः उसे बचाने की खातिर बोलकर लिखवाना शुरू किया है। मेरी तबीयत तो अच्छी ही है। शायद अप्रैलके अन्त में मसूरी जाना होगा।

गुजराती प्रति (एस० एन० १९३९८) की फोटो-नकलसे।

२२४. पत्र : लक्ष्मीदासको

३० मार्च, १९२६

चि० लक्ष्मीदास,

तुम्हारी तबीयत अच्छी होती जा रही है, यह जानकर बहुत अच्छा लगा। जब-तक बिलकुल ठीक नहीं हो जाती तबतक वहाँसे भागनेका विचार न करना।

आनन्दी फिर बीमार पड़ गई है। इसे जब बुखार आता है तब खूब ऊँचा जाता है। आज अरण्डीका जुलाब दिया है। तीन ग्रेन कुनैन भी दी है और वल्लभभाईको डाक्टरसे दवा लेकर भेजनेको कहा है। जब दवा आयेगी तब तुम्हारी इच्छानुसार उसे जारी रखूँगा।

 
  1. पत्रमें आये मसूरीकी प्रस्तावित यात्राके उल्लेखसे।