२१९. पत्र : सतीशचन्द्र दासगुप्तको
साबरमती
२९ मार्च, १९२६
प्रिय सतीश बाबू,
आपका पत्र मिला। उत्कलके सम्बन्धमें भेजा आपका तार पढ़ा। आँकड़ोंकी जाँच करनेके बाद मैंने श्री शंकरलालको सलाह दी है कि वे आपको दो हजार रुपये दिये जाने की अनुमति दे दें।
जैसा कि आप जानते हैं, उत्कलके प्रबन्धसे में व्यक्तिगत रूपसे अत्यन्त असन्तुष्ट हूँ। हमने उत्कलपर बहुत ज्यादा खर्च किया है। निरंजन बाबूने जो हिसाब-किताब भेजा है, मेरे विचारसे वह सन्तोषजनक नहीं है। इससे तो यह जानकारी भी नहीं मिल पाती कि प्रत्येक कार्यालयपर कितना खर्च आता है। हिसाबकी बहियोंसे यह पता लगाना भी असम्भव है कि बिक्री नकद हुई है या उधारपर। आप कृपया निरंजनबाबूसे निम्नलिखित ब्योरे प्राप्त करें:
(१) :(क)प्रत्येक कार्यकर्ताका नाम और योग्यता तथा प्रत्येक कार्यकर्ताको दिया जानेवाला वेतन।
- (ख) जहाँ जिसकी नियुक्ति की गई है उस स्थानका नाम।
- (ग) प्रत्येक केन्द्रको भुगतान कहाँसे किया जाता है?
(२) :(क) प्रत्येक केन्द्रमें होनेवाली बिक्रीका ब्योरा।
- (ख) नकद अथवा उधार?
- (ग) खाता-ॠणोंको कब ठीक मानें, अर्थात् ऐसा ॠण मानें जिनके वापस मिलनेकी उम्मीद हो?
- (घ) जिन ऋणोंका भुगतान सन्दिग्ध है, उनके बारेमें बतायें।
- (ङ) ३७,००० रुपये तकके कर्जदारोंके नाम और पते हमारे पास होने चाहिए।
- (च) अच्छे, बुरे और सन्दिग्ध ऋणोंके वर्गीकरणका क्या आधार है?
(३): (क) इन संस्थाओंके मातहत कितने बुनकर और कातनेवाले काम कर रहे हैं?
- (ख) कातनेवालों और बुनकरोंको क्या पारिश्रमिक दिये जाते हैं?
(ग) तैयार की गई खादीके नमूने और उनकी बिक्री-दर। (घ) बिक्री-दर कैसे निर्धारित की जाती है?
और आपको जैसा जरूरी लगे, उस हिसाबसे आप इनमें और भी जो जानकारी जुड़वाना चाहें, जुड़वा लें। और जब सारी जानकारी मिल जायेगी तब यह