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२१७. पत्र : मोतीबहन चौकसीको

साबरमती आश्रम
रविवार, २८ मार्च, १९२६

चि० मोती,

तुम्हारा पत्र मिला। लिखावटके सम्बन्धमें तुम्हें मुझे सन्तोष देना ही होगा। कभी-कभी ठीक होती है, इससे यह प्रकट होता है कि प्रयत्न करनेसे वह अवश्य सुधरेगी। लिखावटसे अनेक बार मनुष्यके आचारको परखा जा सकता है। इस लिखावटमें मैं बहुत अव्यवस्था देखता हूँ। कलम एक; लिखनेवाला एक; फिर भी कोई अक्षर बड़ा है तो कोई छोटा; कुछ दूर-दूर लिखे गये हैं तो कुछ घिच-पिच। काट-छाँटकी तो कोई हद ही नहीं है। कुल मिलाकर तुम्हारे कार्डमें १७ पंक्तियाँ हैं। जिस व्यक्तिकी गुजरातीकी लिखावट ऐसी अव्यवस्थित हो, पर जो अंग्रेजीके अक्षर ठीक लिख सकता हो वह मेरी बधाईका पात्र नहीं हो सकता। यदि मैं उसका शिक्षक होऊँ तो जबतक वह गुजराती लिखने-पढ़ने में पक्का न हो जाये तबतक अंग्रेजी लिखनेअथवा पढ़नेको सख्त मनाही कर दूँ।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती पत्र (एस० एन० १२१२२) की फोटो-नकलसे।

२१८. पत्र: फूकनको

साबरमती आश्रम
२९ मार्च, १९२६

प्रिय मित्र,

श्री बैंकरने मुझे बताया है कि काफी समयसे खादी बोर्डके, जिसने अब अखिल भारतीय चरखा संघका रूप ले लिया है, ४,००० रुपये आपके पास बकाया चले आ रहे हैं। बजट पूरा करने के लिए इस समय एक-एक पैसेकी जरूरत है। क्या आप इस समय रकमका भुगतान नहीं कर सकते?

हृदयसे आपका,

श्रीयुत फूकन
असम

अ० भा० च० सं० के कार्यालयको सूचनार्थ एक प्रति।

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १११५८) की माइक्रोफिल्मसे।