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२१६. पत्र : मीठूबहन पेटिटको

साबरमती आश्रम
रविवार, २८ मार्च, १९२६

प्रिय बहन,

तुम्हारा पत्र मिला। आन्ध्रसे ज्यादा कलात्मक कपड़ा न मँगवाओ, यह सामान्य रूपसे तो अच्छी बात ही है, लेकिन पैसेको परवाह किये बिना यदि कोई व्यक्ति कोई खास वस्तु माँगे तो जो भाव बैठे वह भाव देकर मँगाना। अन्ततः ये पैसे भी बुनकरोंके घर ही जायेंगे। लेकिन हाँ, हम हमेशा अपनी स्वतन्त्रताको बनाये रखकर मँगवाये। भाई करसनदासने तुम्हारा भेजा हुआ सुत दिया है। उन स्त्रियोंके नाम सदस्योंके रूप में तो नहीं लिखने हैं? सदस्य बनना हो तो प्रतिज्ञापत्रपर हस्ताक्षर करने चाहिए और हमेशा खादीका ही उपयोग करना चाहिए। नरगिस बहनका पता मुझे देना। तुम स्वयं धीरज रखकर अपने स्वास्थ्य के लिए प्रकृतिपर ही निर्भर करना। निश्चिन्त रह सको तो यह अवश्य एक अच्छी बात है। तुमने जो खादी मँगवाई हैं, उसमें ३६ इंच अर्जकी खादी बहुत नहीं है। २७ इंच अर्जवाली है; वह भेज रहा हूँ। क्या ३०-३२ इंचका अर्ज चल नहीं सकता? ३६ इंच अर्जवालीका नमूना इसके साथ भेज रहा हूँ। इसका धुली हुईका भाव १२ आने और कोरीका साढ़े ग्यारह आने है। लेकिन भावकी चिन्ता नहीं। तुम्हें तो, जिस भावसे तुम चाहती हो, उसी भावसे खादी दी जायेगी। इसे मैं भाई करसनदासके हाथ भेज रहा हूँ और उनसे कहा है कि यदि बम्बईमें मिलती हो तो वहाँसे खरीदकर तुम्हें दें। मुझे उम्मीद है कि तुम्हारी तबीयत महाबलेश्वरम ठीक हो गई होगी। मुझे पत्र अवश्य लिखती रहना।

गुजराती प्रति (एस० एन० १०८५८) की फोटो-नकलसे।