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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लिख भेजो तो तुरन्त बन्दोबस्त हो सकता है। मुझे तो कुछ ऐसा खयाल था कि सारा जिम्मा स्वामीने अपने ऊपर ले लिया था और हमारे लिए तो केवल यहाँसे रवाना-भर होनेकी बात थी। इस कार्य में तुम्हें बहुत खटपटमें पड़नेकी जरूरत नहीं है। तात्पर्य यह कि ऐसा कोई परिश्रम नहीं करना है, जिससे तबीयत खराब हो जाये। जितनी खबर तुम वहाँसे भेज सकते हो उतनी ही मिल जाये तो बाकी सब यहाँ कर लिया जा सकेगा। तुम फिलहाल लोनावला नहीं छोड़ सकते, यह बिलकुल ठीक है। तुम्हें बुखार कैसे आ गया है, यह तो जब तुम मुझे पत्र लिखोगे तभी मालूम होगा। इस तरह जब बुखार आ जाये, उस समय घबराना नहीं चाहिए। तुम्हारे पत्रसे ऐसा लगता है कि तुम कुछ घबरा गये थे।

गुजराती प्रति (एस० एन० १९३९२) की माइक्रोफिल्मसे।

२११. पत्र : देवदास गांधीको

साबरमती आश्रम
शनिवार, २७ मार्च, १९२६

चि० देवदास,

तुम्हारे पत्र दिन-ब-दिन कम होते जाते हैं। बादमें कहीं ऐसा तो नहीं करोगे कि वर्षमें केवल दीवालीपर एक पत्र लिख दिया और बस हो गया। रामदास और जयसुखलाल आज आये हैं। उनको देखने के बाद मैं उनसे अभी कुछ बात नहीं कर सका हूँ। मेरा मसूरी जाना कदाचित् १५ अप्रैलतक न हो। आजकलमें तार आयेगा; उसपर से ज्यादा मालूम होगा। अभय आश्रमवाले डाक्टर सुरेश बनर्जी अभी यहीं हैं। मंगलवारतक रहेंगे।

गुजराती प्रति (एस० एन० १९३९३) की माइक्रोफिल्मसे।

२१२. पत्र : मथुरादास त्रिकमजीको

साबरमती आश्रम
शनिवार, चैत्र सुदी १३ [२७ मार्च, १९२६][१]

चि० मथुरादास,

तुम्हारा पत्र मिला। तुम्हारे लिखनेमें अविवेक हो ही नहीं सकता तो फिर

अविवेकके लिए क्षमा क्या माँगनी? तुम्हारे भयको मैं समझ सकता हूँ। धर्मपुरमें तुम्हारे रहने की व्यवस्था आसानीसे हो सकती है, ऐसा मैं मानता हूँ। लेकिन धर्मपुर जा सकते हो, तो पंचगनी क्यों नहीं? पंचगनीमें सर प्रभाशंकरका बंगला मिल

 
  1. पत्रमें आये गांधीजीकी प्रस्तावित मसूरी-यात्रा और मथुरादासके किसी स्वास्थ्यवर्धक स्थानमें रहनेकी आवश्यकताके उल्लेखसे।