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२०९. पत्र : नाजुकलाल नन्दलाल चौकसीको

साबरमती आश्रम
शनिवार, चैत्र सुदी १३ [२७ मार्च, १९२६]

भाईश्री ५ नाजुकलाल,

भगवान करे तुम्हारे सब शुभ प्रयत्न सफल हों और तुम्हारा शरीर बिलकुल स्वस्थ हो जाये।

मोतीने सप्ताह में एक बार ही लिखनेकी छूट माँगी है, यह बात मुझे कैसे पसन्द आ सकती है? लेकिन जबर्दस्ती पत्र लिखवानेकी अपेक्षा बिलकुल न लिखनेकी बातको मैं ज्यादा अच्छा समझता हूँ, क्योंकि जबर्दस्ती पत्र लिखने से पत्रके प्रति ही अरुचि उत्पन्न हो सकती है और इससे पत्र लिखनेका हेतु ही निष्फल हो जाता है। मैं तो पत्र लिखता ही रहूँगा। मोती पढ़कर हमेशा जो सार लिखा करती थी, वह मुझे पसन्द नहीं, यह बात तुमसे किसने कही? मुझे तो ऐसा खयाल है कि मैंने इसकी प्रशंसा की थी। मुझे कुछ ऐसा भी याद है कि मैंने मोतीको यह सार अधिक अच्छी तरह लिखने के लिए लिखा था। मुझे लगता है कि अब तो मोतीका सप्ताह भी बीत गया है। अकसर लिखनेकी अपेक्षा प्रत्येक सप्ताह लिखनेकी बात याद रखना ज्यादा मुश्किल है, ऐसा मेरा अनुभव है; लेकिन अब देखेंगे कि मोती किस तरह अपने नियमका पालन करती है। तुम उसे शर्मिन्दा करके मत लिखवाना। वह भूल जायेगी तो कोई परवाह नहीं भूलते-भूलते भूल सुधारनेकी बात भी सूझेगी।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती पत्र (एस० एन० १२१२१) की फोटो-नकलसे।

२१०. पत्र: प्रभुदास गांधीको

साबरमती आश्रम
शनिवार, चैत्र सुदी १३ [२७ मार्च, १९२६]

चि० प्रभुदास,

तुम्हारा काशीको लिखा पत्र मैंने पढ़ा। काशीको वहाँ बुलानेके लिए तुम्हारी अधीरता समझी जा सकती है। तुमने सर्दीके बारेमें लिखा था, इसीलिए उसे आनेमें संकोच हो रहा था। अब तुम वहाँ ज्यों ही इसके लिए तैयार हो जाओगे, त्यों ही वह निकल सकेंगी। परन्तु अभीतक तो मकानका भी बन्दोबस्त नहीं हुआ है। मैंने तो आज ही इस बातकी जाँच की है। अर्जीका फार्म आदि भरना बाकी है। यह अर्जी किसे भेजनी है? मकान देनेका प्रबन्ध किसके हाथ है, उसका पता-ठिकाना