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पत्र: आर० डी० टाटाको

हूँ कि आप चरखा संघको एक ठीक संस्था मानते हैं और यही कारण है कि मैं आपकी ओरसे कोई भी बहाना स्वीकार नहीं करूँगा।

आपका स्वास्थ्य कैसा चल रहा है ? आप देशकी वर्तमान स्थितिके सम्बन्धमें कैसा महसूस करते हैं, मैं इसके बारेमें कुछ पूछना नहीं चाहता। जो स्थिति है, वह तो बिलकुल हमारे आमने-सामने चुनौती देती हुई खड़ी है। शुएब कहाँ है? मैं अगले महीने किसो समय मसूरी जानेवाला हूँ। यदि जानेकी नौबत आई तो मैं दिल्लीसे गुजरते समय आपसे स्टेशनपर मिलनेकी उम्मीद करता हूँ। मेरे प्रसिद्ध तानाशाह कैसे हैं? और बेगम साहिबा कैसी है? मेरा खयाल है कि वे अपने हिस्सेका सूत नियमित रूपसे भेजती रही हैं। लड़कियाँ भी ऐसा क्यों न करें, सो मेरी समझमें नहीं आता।

आपका,

मौलाना मुहम्मद अली
दिल्ली

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९३८९) की फोटो-नकलसे।

२०७. पत्र : आर० डी० टाटाको

साबरमती आश्रम
२७ मार्च, १९२६

प्रिय श्री टाटा,

आपको शायद याद होगा, जब मैं जमशेदपुरमें था तब आपने मुझसे कहा था कि मुझे एक लाखके भीतर जितने तकुओं और तकलियोंकी जरूरत होगी, उतने आप मुझे खुशी-खुशी देंगे। अगर मुझे ठीक याद है तो इतनी ही संख्या कही गई थी। मैंने यह बात सतीश बाबूपर छोड़ दी थी कि वे जिस तरहके तकुए और तकलियाँ बनवाना चाहते हैं, उसका नमूना आपको भेज दें। मैं समझता हूँ कि इस बारेमें उस बातचीतसे आगे कुछ नहीं किया गया है। इस समय मेरे पास तकुओं और तकलियोंकी बहुत ज्यादा माँग आ रही है और मैं उसे पूरा नहीं कर पा रहा हूँ। क्या आप मुझे तकुए और तकलियाँ देंगे? हालांकि मैंने आपको हमारे बीच हुई बातचीतको याद दिलाई है, लेकिन मैं यह नहीं चाहता कि आप दिक्कत उठाकर ये वस्तुएँ मुझे दें। मैं चाहूँगा कि आप इसपर एक स्वतन्त्र सुझावके रूप में विचार करें और यदि आपको लगे कि बहुत ज्यादा असुविधा अथवा खर्च उठाये बिना इस कुटीर उद्योग आन्दोलनकी, जितनी मदद देनेका सुझाव मैंने रखा है, उतनी मदद आप कर सकते हैं तो मैं आभारी होऊँगा।

मैंने श्री अलेक्जेंडरको सीधे एक पार्सल भेजा है, जिसमें तकुओं और तकलियोंके नमूने हैं। ये चार प्रकारके हैं और यदि आप इन्हें देनेका विचार रखते हैं तो