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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

है, वह सचमुच नाजुक किस्मका है। आप जो पत्र प्रकाशित करनेका विचार रखते है, उसकी नीतिके बारेमें जब मुझे कुछ मालूम हो नहीं है तो फिर मैं आपका पथ-निर्देशन कैसे कर सकूँगा या आपको प्रेरणा कैसे दे सकूँगा? पत्रके लिए आपने जो नाम चुना है, उस नामसे ही मुझे डर लगता है। यह बात नहीं कि मैं रिपब्लिकेनिज्म (गणतन्त्रवाद) का कायल नहीं हूँ, परन्तु मेरे विचारसे इस समय भारतके लिए गणतन्त्र एक अर्थ-हीन शब्द है। मैं जानता हूँ कि इस मामलेपर मतभेद है, लेकिन मुझे अपने मतपर दृढ़ रहना चाहिए। मैं समान उद्देश्यकी पूर्तिके लिए युवा पीढ़ीके साथ मिलकर काम करनेको तैयार हूँ, लेकिन मैं उनसे पूरी तरह सहमत नहीं हो सकता। ज्यादासे-ज्यादा में यही कर सकता हूँ कि अपनेको पृष्ठभूमिमें रखूँ और नौजवान लोग जिस बातको दूसरोंके अनुभवसे सीखनेसे इनकार करते हैं, उसे उन्हें खुद अपने कड़वे अनुभवोंसे सीखने दूँ।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत जी० पी० नायर

सम्पादक, 'रिपब्लिक'

माल रोड, कानपुर

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९३८८) की फोटो-नकलसे।

२०६. पत्र : मौलाना मुहम्मद अलीको

साबरमती आश्रम
२७ मार्च, १९२६

प्रिय मित्र और भाई,

एक पत्र-लेखकने कड़ा पत्र लिखा है, जिसमें उन्होंने पूछा है कि 'यंग इंडिया' में हर हफ्ते अखिल भारतीय चरखा संघके सदस्योंकी जो सूची प्रकाशित की जाती है, उसमें आपका नाम क्यों नहीं है। मैं भी आपसे यही प्रश्न पूछता हूँ। जबतक मुझे यह पत्र नहीं मिला था, तबतक मुझे मालूम नहीं था कि आपने एक भी महोनेका चन्दा नहीं भेजा है। यदि आप यह कहें कि आजकल आप बहुत ज्यादा परेशान अथवा व्यस्त हैं, तो मैं यह बहाना मानने को तैयार नहीं हूँ। दो बातें हो सकती हैं : या तो चरखा चलाना एक महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है और इसका प्रसार करनेके लिए चरखा संघ ठीक संस्था है, अथवा चरखा चलाना जरूरी नहीं है और यदि जरूरी है भी तो इसका प्रसार करनेके लिए चरखा संघ ठीक संस्था नहीं है। यदि पहली बात ठीक है, तो फिर आपकी जैसी स्थितिवाले व्यक्तिके संघमें न बने रहनेका कोई भी बहाना स्वीकार नहीं किया जा सकता। यदि दूसरी बात सही है तो संघको छोड़नेके लिए किसी बहानेको जरूरत नहीं है, बल्कि तब तो सही बात यही है कि संघकी स्पष्ट शब्दोंमें भर्त्सना को जाये। मैं जानता हूँ कि आप चरखेका पूरा समर्थन करते हैं। मैं जानता