पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 30.pdf/२३३

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

२०१. पत्र : मीठाबाईको

साबरमती आश्रम
शुक्रवार चैत्र सुदी १२ [२६ मार्च, १९२६][१]

गंगास्वरूप बहन मीठाबाई,

आपका पत्र मुझे मिला है। आपके दुःखसे मुझे दुःख होता है। भाई शिवजीके प्रति आपकी भक्ति देखकर मुझे आनन्द होता है। लेकिन आपके पत्रका यदि मेरे ऊपर कोई असर नहीं हुआ तो इसमें मैं क्या कर सकता हूँ? आप जो-जो बातें लिखती हैं, वे सब वैसी ही हों, तो भी और अपने प्रयत्नके बावजूद उन्हें यदि मैं वैसा न देख सकूँ तो उसमें क्या दोष दिया जा सकता है? मैं ऐसा मानता हूँ कि जब मावजी भाई आदि यहाँ आये थे तब मैं तो स्वस्थ ही था, जबकि आपको लगता है कि मैं पागलपन-भरी बातें कहता था। मैंने अपनी पत्नीके बारेमें जो बात की, उसमें मैंने न तो उसकी निन्दा की और न ही कुछ अनुचित काम किया, ऐसा मुझे अभी भी लगता है।

आपका पत्र, यदि पंचायत बैठी तो, अवश्य उसके पास भेजूँगा, आप स्वयं आकर पंचोंसे जो कहना चाह सो कह सकेंगी।

गुजराती प्रति (एस० एन० १९३८१ आर०) से।

२०२. पत्र : मावजीको

साबरमती आश्रम
शुक्रवार, चैत्र सुदी १२ [२६ मार्च, १९२६][२]

भाईश्री ५ मावजी,

एक ओरसे तो भाई शिवजीके मामलेका स्पष्टीकरण करनेके लिए मुझपर दबाव डाला जा रहा है और दूसरी ओरसे भाई शिवजीके भक्तजन मुझपर शब्द प्रहार कर रहे हैं, जो स्वाभाविक ही है। मेरी स्थिति त्रिशंकुकी जैसी हो गयी है। मैं न तो भक्तोंको सन्तुष्ट कर सकता हूँ और न उनके टीकाकारोंको। भाई...[३] ने एक कटु पत्र लिखा है, और उसमें कहा है कि पंचायत बैठानेकी बात मैंने कही है। मैं कह सकता हूँ कि मेरे मन में इसका खयाल बिलकुल भी नहीं आया। यदि भाई शिवजीको पंचायत नहीं चाहिए तो वे अवश्य इस प्रस्तावको खत्म कर दें। इस छोटे-से कामको यदि आप जल्दी निपटा सकें तो मैं आपका ॠणी होऊँगा। मैं स्वयं पंचायतका तनिक

 
  1. शिवजीके मामलेके उल्लेखके आधारपर ।
  2. देखिए पिछले शीर्षकको पाद-टिप्पणी ।
  3. यहाँ नाम छोड़ दिया गया है।