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१९९. पत्र : डी० वी० रामस्वामीको

साबरमती आश्रम,
२६ मार्च, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका दुःखद पत्र मिला। मैंने आपका पत्र पाने से पहले कृष्णके जरिये आपको एक पत्र भेज दिया था। हनुमन्तरावकी पत्नीके नाम भी एक पत्र भेजा था। मेरे मनमें कोई भी सन्देह नहीं था कि हनुमन्तराव बहादुरीसे मरे हैं। मैं अब आपसे आशा करता हूँ कि हनुमन्तरावने अपना काम जहाँपर छोड़ा है, आप उसे उससे आगे, जहाँ तक आपसे बन सकेगा, जारी रखेंगे। मुझे अपना हाल-समाचार बताइएगा। आप क्या कर रहे हैं? आशा है, परिवारके सभी सदस्य उनकी मृत्युको प्रसन्न मनसे सहन कर रहे हैं। हनुमन्तरावकी जैसी बहादुरीकी मौतपर शोक मनाना अनुचित होगा। मैंने हनुमन्तरावको जो दूसरा पत्र लिखा था, कृपया उसे राजमुन्दरीवाले मित्रके पास भेज दीजिए और मुझे उनका पता भी लिखिए। मैं चाहूँगा कि जहांतक हो सके, प्राकृतिक चिकित्साके लिए उससे अधिक कार्य करूं जितना कि अबतक करता रहा हूँ; क्योंकि जबतक हनुमन्तराव जीवित थे, मुझे लगता था कि उस काममें मुझे हस्तक्षेप करनेकी जरूरत नहीं है जिसमें वे विशेष योग्यता प्राप्त कर रहे हैं।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत डी० बी० रामस्वामी
विशाखापट्टनम्

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९३८७) को माइक्रोफिल्मसे।

२००. पत्र: चीनी मित्रोंको[१]

२६ मार्च, १९२६

मुझे प्रतिनिधियोंकी ओरसे निमन्त्रण मिलना चाहिए।[२] मेरा शान्तिका सन्देश यदि अन्य लोगोंको नहीं तो मुझे बुलानेवालोंको तो पसन्द आना चाहिए। यदि ऐसा हो तो वे लोग आकर पहले मेरे दृष्टिकोणको समझ लें; बादमें में आनेका विचार करूँगा।

[गुजरातीसे]
बापुनी प्रसादी
 
  1. गुजराती अनुवादसे अनुवादित ।
  2. गांधीजीको प्रस्तावित चीन-यात्राके लिए, देखिए "पत्र: ए० ए० पलको", ३-३-१९२६, ९-५-१९२६ और ३०-५-१९२६।