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पत्र : मरियम आइजकको

व्यर्थकी कागजी बहससे क्या लाभ? इसलिए मैं धीरज धरकर चुपचाप सब देख रहा हूँ और प्रभुसे प्रार्थना करते हुए यह आशा रखता हूँ कि आज हम अपने चारों ओर जो घोर अन्धकार देखते हैं, ईश्वर उस अन्धकारको दूर करने की तैयारी कर रहा है।

ख्वाजा कहाँ है? क्या उन्होंने जामियाको छोड़ दिया है और अपनी प्रैक्टिस फिर शुरू कर दी है। अब संस्थाका प्रधान कौन है? शुएब कहाँ है? उसने अनुसूयाबाईके पत्रकी प्राप्ति भी स्वीकार नहीं की है। मैंने उसे पत्र नहीं लिखा है, क्योंकि मैं आशा कर रहा हूँ कि शिष्टमण्डलके कामोंसे मुक्त होनेपर वह मुझे पत्र लिखेगा।

हृदयसे आपका

हकीमजी अजमलखाँ साहब
दिल्ली

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९३८५) की फोटो-नकलसे।

१९८. पत्र : मरियम आइजकको

साबरमती आश्रम
२६ मार्च, १९२६

प्रिय बहन,

आपका पत्र मिला। यदि आप गरीबोंकी सेवा व्यापकतम अर्थोंमें करना चाहती हैं, तो मैं आपको चरखा और खादी-प्रचार करनेका ही सुझाव दे सकता हूँ। यह कार्य करना कठिन है, लेकिन आप इससे गरीबीकी बीमारीका इलाज शुरू तो कर सकती हैं। मुझे खुशी है कि आप कताई शुरू करनेका विचार कर रही हैं। अनुशासन और त्यागके एक तरीकेके रूपमें और गरीबोंको मजदूरी देने के लिए आपको हर घरमें इसे शुरू कराकर अपने कार्यको सम्पन्न करना चाहिए। आप स्वयं भी खादी अपना सकती हैं और अपने मित्रोंमें भी उसका प्रचार कर सकती हैं। इस तरह लगातार गरीबोंसे तादात्म्य रखने से आप उनकी सेवाके कई और तरीके खुद खोज सकेंगी।

मैं आपको 'यंग इंडिया' की एक प्रति मुफ्त भेजनेका प्रबन्ध कर रहा हूँ। आशा है, आप उसकी फाइल बनायेंगी या अन्य लोगोंको दे देंगी, जो इसे पढ़ना तो चाहते हों पर शायद खरीदने में असमर्थ हों।

हृदयसे आपका,

श्रीमती मरियम आइजक

मार्फत श्री ए० एम० पॉल
अरीक्कल मेकावे

अंगमलि, उ० त्रावणकोर

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९३८६) को माइक्रोफिल्मसे।