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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मुझे आश्रम छोड़ने की कोई जल्दी नहीं है। मैं जमनालालजी तथा अन्य मित्रोंसे वचनबद्ध हूँ कि उनके कहनेपर किसी भी दिन उनके तय किये गये स्थानपर जानेके लिए साबरमतीसे रवाना होने को तैयार रहूँगा। लेकिन यदि रवानगीका दिन मुझे तय करना हुआ तो मैं उस समय जाना चाहूँगा जब थोड़े दिनोंकी छुट्टियोंके लिए आश्रमका स्कूल बन्द हो जाता है। मैं ३० मिनटकी एक कक्षा लेता हूँ और वह मेरे लिए कोई थकानेवाला काम नहीं है। यह कक्षा में छोड़ना नहीं चाहूँगा। इसके अलावा और कुछ छोटी-छोटी चीजें हैं जिन्हें में जाने से पहले पूरा कर लेना चाहूँगा। तीसरी बात, और वह स्वास्थ्यको दृष्टिसे सबसे ज्यादा महत्त्वकी है, यह है कि यहाँ मौसम सुहावना और ठंडा है। इस समय भारतके इस हिस्से में ऐसा मौसम होना असामान्य बात है, लेकिन मारवाड़में खूब वर्षा होने से गुजरातका मौसम विशेष रूपसे ठंडा हो गया है। सुबह के समय कम्बलकी जरूरत पड़ती है। और दिनमें परेशान करनेवाली गर्मी नहीं होती। अभी कुछ समयतक इस तरहका मौसम बना रहेगा, ऐसी सम्भावना है। इसलिए सच पूछिए तो यह मौसम अभी मेरे लिए बहुत अनुकूल है। पत्र लिखाते समय भी ठण्डी हवा चल रही है और मैं इससे अधिक अच्छी जल-वायुकी कल्पना अन्यत्र नहीं कर सकता। मैं प्रतिदिन कमसे-कम एक घंटा मजेमें घूम लेता हूँ। ठीकसे भोजन कर रहा हूँ और अच्छी तरह बातचीत कर लेता हूँ। लगभग प्रति सप्ताह एक पौंडके हिसाबसे मेरा वजन बढ़ रहा है। इसलिए मैं तब तक आश्रम छोड़ना नहीं चाहूँगा जबतक ऐसी अनुकूल परिस्थितियाँ बनी हुई हैं। इसके अलावा यदि किसी तरहसे भी सम्भव हो तो मुझे यहाँसे तभी क्यों न हटाया जाये जब मसूरीमें आजकलकी अपेक्षा ठंड कुछ कम हो जाये और इस तरह बजाय इसके कि बीचमें कुछ दिन कहीं और रुकूँ, मैं यहाँसे सीधे मसूरी ही चला जाऊँ? यदि मेरा स्वास्थ्य बहुत ही नाजुक होता और मैं यहाँकी गर्मी बर्दाश्त न कर सकता, तो इस सबकी जरूरत शायद हो सकती थी। मैं न तो इतना कमजोर हूँ और न यहाँ गर्मी है। अब में यह मामला उन मित्रोंके हाथोंमें छोड़ता हूँ जो फिलहाल मेरी गतिविधियोंका संचालन कर रहे हैं।

और जहाँतक आपका सम्बन्ध है, मैं समझता हूँ, आपको यह कहनेका कोई हक नहीं कि मुझे अपने स्वास्थ्यके लिए क्या करना चाहिए और क्या नहीं, क्योंकि आपका स्वास्थ्य मुझसे कहीं ज्यादा नाजुक है। और मुझे मिले सारे ब्योरोंसे पता लगता है कि आपने यूरोपमें जितनी भी सेहत बनाई थी, लगभग सब गँवा दी है, और आप अपनी सेहतपर बिलकुल ध्यान नहीं दे रहे हैं, आराम बिलकुल नहीं करते और दिनमें हर समय, यहाँतक कि रातमें भी, मरीजों और मित्रोंसे मिलते रहते हैं। इसलिए जबतक आप अपना तौर-तरीका नहीं सुधारते, तबतक में स्वास्थ्यके सम्बन्धमें आपकी कोई हिदायत सुननेको तैयार नहीं हूँ। मैं तो इस सिद्धान्तका अनुयायी हूँ कि 'वैद्य, पहले अपना इलाज कर।'

अब देशकी वर्तमान दशाके बारेमें में अपने मनका बोझ आपके सामने हलका करूँ तो क्या कोई हर्ज है? इस सम्बन्धमें अबतक में संयमसे काम लेता रहा हूँ।