यदि इन सभी प्रश्नोंका उत्तर "हाँ" में है तो कोई भी व्यक्ति चाहे जो कहै, यह तो निश्चित है कि हाथ-कताई उद्योगका नाश होने से पहले ये खेतिहर लोग जितने गरीब थे, उसकी अपेक्षा अब वे ज्यादा गरीब हो गये होंगे। जनताकी इस बढ़ती हुई गरीबीके कई अन्य कारण भी हैं, लेकिन मैं समझता हूँ कि इन प्रश्नों में जितनी बातें आ जाती हैं, वे एक साधारण जिज्ञासुके लिए काफी हैं। मैंने सचाईका पता लगानेका यह तरीका आपको इसलिए सुझाया है कि भारतकी बढ़ती गरीबी के दुःखद तथ्यको आप एकाधिक तरीकोंसे जाँच कर सकें।
हृदयसे आपका,
अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १२४५१) की फोटो-नकलसे।
१९५. पत्र : अमूल्यचन्द्र सेनको
साबरमती आश्रम
२६ मार्च, १९२६
प्रिय मित्र,
आपका पत्र मिला। मैं यह दावा नहीं करता कि मुझे पूर्ण सत्यका साक्षात्कार हो गया। लेकिन जहाँतक हुआ है, स्वाभाविक रूपसे हुआ है। असत्यको छोड़कर सत्यको ग्रहण करने का कोई विशेष क्षण मेरे जीवन में आया हो, ऐसा मुझे याद नहीं है। कृपया उन मिशनरी महिलाको बताइए कि अपने बंगालके दौरेके समय में अंग्रेज लोगों द्वारा चलाई जा रही कई मिशनरी संस्थाओंमें गया था। उनमें से कुछका तो हाथ-बुनाई या हाथ-कताईसे कोई सरोकार नहीं था। उन्हें यह भी बता दीजिएगा कि मैं खास तोरसे सिरामपुरके सरकारी बुनाई प्रतिष्ठान और उसके निकट स्थित चर्च ऑफ इंग्लैंड मिशन द्वारा संचालित लड़कियोंके स्कूलमें भी गया था। इसलिए यदि मैं उनके गलीचेके कारखाने में नहीं गया तो केवल समयाभावके ही कारण ऐसा हुआ होगा।
मैं आपको यह बतानेके लिए धन्यवाद देता हूँ कि आप खादीके सिवाय कुछ और नहीं इस्तेमाल करते हैं।
हृदयसे आपका,
सीनियर लेक्चरर
लैंग्वेज स्कूल, क्वीन्स हिल
अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९३८३) की माइक्रोफिल्मसे।