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१९०. पत्र : प्रतापसिंहको

साबरमती आश्रम
बृहस्पतिवार, चैत्र सुदी ११ [२५ मार्च, १९२६][१]

कुमारश्री प्रतापसिंहजी,

आपका ३ मार्चका पत्र मिला था। अब...राणासाहब पोरबन्दरमें आ गये हैं, ऐसा मैंने सुना है। इसलिए यदि मेरे पत्रका उत्तर दिया जा सके तो दीजिएगा।

गुजराती प्रति (एस० एन० १९३७४) की माइक्रोफिल्मसे।

१९१. पत्र : फूलचन्दको

साबरमती आश्रम
बृहस्पतिवार, चैत्रसुदी ११ [२५ मार्च, १९२६][२]

भाईश्री फूलचन्द,

आपका पत्र मिला। आप बहुत जल्दी निराश हो जाते हैं और मुझसे निराश होते नहीं बनता। लेकिन इसका क्या उपाय? आपको जहाँ निराशा दिखाई देती है, वहाँ मैं आशा देखता हूँ। मेरी श्रद्धा तनिक भी डगमगाती नहीं है। भावनगरके लोग अनेक प्रकारसे ताने मारते हैं तो मारें। हम इससे क्यों डरें अथवा डगमगायें? मुझे विश्वास है कि शहरोंमें थोड़ी-बहुत मात्रामें खादीकी खपत अवश्य होगी। हमारा मुख्य कार्य गाँवों में ही होना चाहिए, इसमें कोई शंका हो ही नहीं सकती। नगर-पालिका आदिका काम हो सकता हो तो उसे करनेमें मेरा कोई विरोध नहीं है। लेकिन एक ही व्यक्तिको अनेक प्रकारका काम तो कदापि नहीं करना चाहिए। अपना क्षेत्र मैंने ढूँढ़ लिया है। यदि राजनीतिक परिषद् कोई व्यापक कार्य करना चाहती है तो ऐसा कार्य तो खादीका ही है, अथवा अन्त्यजोंका है। नगरपालिकाका काम करनेके लिए तो अनेक लोग निकल पड़ते हैं। वे यह करें और उसे शोभान्वित करें तो बहुत अच्छी बात है। लेकिन खादी और अन्त्यजोंका काम करनेवाले लोग बहुत नहीं हैं। उसे तो हमें ही शोभान्वित करना है और यदि हमें उसमें विश्वास हो तो लोक-निन्दासे पराजित होनेकी क्या बात है? आपने कपासका संग्रह करनेके बारेमें लिखा है। उसका मुझे विश्वास नहीं होता। गारियाधारमें शम्भुशंकरने ऐसा

 
  1. पोरवन्दर में काठियावाड़ राजनीतिक परिषद् बुलाने के सम्बन्ध में प्रतापसिंहके साथ गांधीजीका पत्रव्यवहार इसी वर्ष चल रहा था। देखिए "पत्र : प्रतापसिंहको", २५-२-१९२६ ।
  2. पत्रमें राणा साइबके पोरबन्दर लौंटने और वहाँ काठियावाड़ राजनीतिक परिषद्को बैठक बुलाने की चर्चाके आधारपर।