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१८८. "स्वत्वाधिकारका आग्रह रख"

एक सज्जन लिखते हैं :

आपने जो अखबारोंके मालिकोंको यह इजाजत दे दी है कि अगर वे चाहें तो आपकी 'आत्मकथा' के अध्यायोंको उद्धृत कर सकते हैं, मुझे तो लगता है कि उसका 'यंग इंडिया' और 'नवजीवन' की बिक्रीपर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। अखबारोंमें जो व्यापारिक भावना आ गई है, उसको देखते हुए मैं तो इसी निष्कर्षपर पहुँचा हूँ कि आप अखबारोंको ये अध्याय उद्धृत करनेकी अनुमति देकर ठीक नहीं कर रहे हैं। अगर आप उन्हें इसकी अनुमति नहीं देते तो जो लोग आज 'यंग इंडिया' और 'नवजीवन' नहीं खरीदते वे भी आपकी 'आत्मकथा' पढ़नेके लिए उनके ग्राहक बन जायेंगे और इस तरह वे उनमें प्रकाशित अन्य लेख भी पढ़ेंगे। फिर, आप अपने सन्देशको प्रचारित करनेका अवसर क्यों खोते हैं और शराब-सम्बन्धी तथा दूसरे आपत्तिजनक विज्ञापनोंको, जैसे रति-कला, ताकतकी दवाएँ, अश्लील पुस्तकों और लघु कहानियोंको प्रचारित करनेके भागीदार क्यों बनाते हैं? यह सिर्फ मेरा ही नहीं, बल्कि 'यंग इंडिया' के बहुत से पाठकोंका मत है।

इस सलाहके पीछे जो शुभ हेतु है, उसकी मैं सराहना करता हूँ, लेकिन मुझे कहना पड़ेगा कि यह सलाह मेरे मनको जँची नहीं। आजतक मैंने अपने किसी लेखके स्वत्वाधिकारपर आग्रह नहीं किया है। इसमें सन्देह नहीं कि 'आत्मकथा' के—अगर इसे 'आत्मकथा' कहा जा सकता हो तो—अध्यायोंके सम्बन्धमें प्रकाशकोंने मेरे पास बहुत लुभावने प्रस्ताव भेजे हैं और हो सकता है, मैं जिस उद्देश्यको लेकर चल रहा हूँ, उसके हितका खयाल करके इस लोभमें पड़ जाऊँ। लेकिन फिर भी उनके सम्बन्ध में मुझे किसी प्रकारके एकाधिकारकी बात पसन्द नहीं है। मुझे जिन पत्रोंके सम्पादनका सौभाग्य प्राप्त रहा है, उनमें प्रकाशित लेखोंको सबकी सम्पत्ति मानना चाहिए। स्वत्वाधिकार कोई स्वाभाविक चीज नहीं है। यह एक आधुनिक प्रथा है, और शायद एक हदतक वांछनीय भी है। लेकिन, दूसरे अखबारोंको आत्मकथा 'के अध्यायोंको छापनेसे रोककर 'यंग इंडिया' या 'नवजीवन' की ग्राहक संख्या बढ़ाने की मेरी कोई इच्छा नहीं है। मैं 'यंग इंडिया' या 'नवजीवन' के पृष्ठोंके जरिये लोगोंको जो सन्देश देनेका प्रयत्न करता हूँ, उसे अपने ही बलका आसरा होना चाहिए और मैं उतने ही ग्राहकोंको पाकर सन्तुष्ट हूँ, जितने ग्राहक आज इन पत्रोंको मेरी 'आत्मकथा' जैसे किन्हीं विशेष लेखोंको पढ़नेके लोभसे नहीं, बल्कि ये पत्र जिस सन्देशके उद्वाहक हैं, उस सन्देशके कारण खरीदते हैं। फिर, मैं पत्र-लेखकके इस विचारसे भी सहमत नहीं हूँ कि इन पत्रोंके पृष्ठोंमें लिखे अपने लेखोंको किसी दूसरेको प्रकाशित