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१८७. एक भारत-सेवक

हनुमन्तराव, जो किसी समय सर्वेट्स ऑफ इंडिया सोसाइटीके सदस्य थे, अब इस संसारमें नहीं रहे। वे अपने आदर्शोंके लिए शहीद हो गये हैं। वे प्राकृतिक चिकित्सा-पद्धतिके पक्ष-पोषक थे। मनुष्यको जो अनेक बीमारियाँ होती हैं उनकी चिकित्सा के लिए औषधियों के उपयोग में उनका विश्वास नहीं था। रोग-निवारणके लिए प्रकृतिकी सहायताके रूपमें केवल लुई कुनेकी जल-चिकित्सा पद्धतिको ही वे स्वीकार करते थे। जल-चिकित्साकी क्षमतामें उनका विश्वास लगभग धार्मिक विश्वास-जैसा था। इस चिकित्सा पद्धतिको ग्रामीणों में लोकप्रिय बनानेका वे स्वप्न देखा करते थे। वे जो कुछ कहते थे, वही करते भी थे। वे एक साल पहले बहुत गम्भीर रूपसे बीमार हो गये थे। उन्होंने जल-चिकित्साका आश्रय लिया और ऐसा खयाल किया जाता था कि इससे वे ठीक हो गये थे। वे विशाखापट्टनममें बीमारीके बाद पूर्ण स्वास्थ्य अर्जित करनेके खयालसे आराम कर रहे थे कि २० तारीखको उनका देहान्त हो गया। वे अन्तिम क्षणतक अपने विश्वासपर कायम रहे। अपनी मृत्युसे कुछ ही दिन पहले उन्होंने मुझे एक लम्बा पत्र लिखा था। पत्रमें उन्होंने प्राकृतिक चिकित्सामें अपनी आस्था व्यक्त की थी और मुझे इस बातके लिए मीठी झिड़की दी थी कि उन्हींकी तरह प्राकृतिक चिकित्सामें विश्वास करते हुए भी कुनैन खाकर और लोहे तथा संखियाके इंजेक्शन लेकर मैंने कमजोरी दिखाई। वे मुझसे और अधिक दृढ़ मनोबलकी आशा करते थे। इन दिनों, जबकि कथनी और करनीमें इतना विरोध रहता है, हनुमन्तराव-जैसे मनुष्यको देखकर शक्ति मिलती है। वे अपने विश्वासपर मरते दमतक कायम रहे। यदि वे भूल भी कर रहे थे तो भी क्या? वे सत्यान्वेषी थे। हम सत्यको तभी पा सकते हैं जब हम जिस बातको सत्य मानते हैं, उसपर आचरण करें। हनुमन्तराव मरकर भी जीवित हैं, क्योंकि उन्होंने इस नश्वर शरीरमें रहनेवाली आत्माकी अमरताको जान लिया था।

हनुमन्तराव देशभक्त थे। वे अपने देशसे जितना प्रेम करते थे, उससे ज्यादा कोई दूसरा मनुष्य नहीं कर सकता। किन्तु फिर भी उनके अन्दर कोई कटुता नहीं थी। अहिंसा उनका धर्म था, केवल नीति नहीं। इसलिए मैंने प्रथम श्रेणीके सत्याग्रहियोंकी अलिखित सूचीमें उनका नाम रखा था। उन्होंने नेल्लूरके पास एक छोटीसी संस्था खोली थी, जहाँ कार्यकर्ताओंके एक दलकी सहायतासे वे खादीका काम आगे बढ़ा रहे थे, और पास-पड़ोसमें रहनेवाले तथाकथित अस्पृश्योंकी सेवा कर रहे थे। उनके पीछे परिवारमें अब उनकी विधवा पत्नी हैं, जो अपने पतिके विचारोंमें विश्वास रखती हैं और उन्होंने गरीबी और बेहद सादगीकी जिन्दगी अपनानेमें अपने पतिका पूरा साथ दिया।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २५-३-१९२६