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१८४. पत्र : कृष्णदासको

साबरमती आश्रम
बुधवार, २४ मार्च, १९२६

चि० कृष्णदास,

तुम्हारा पत्र मिला। यदि मुझपर छोड़ दिया जाये तो मैं अंग्रेजीमें लिखनेवाला आदमी हूँ ही कहाँ? इसलिए तुम गुजराती में लिखो और में उसका अंग्रेजीमें उत्तर दूँ, यह बात मुझे खुदको अच्छी नहीं लग सकती। भूलोंको भाई चन्द्रशंकर सुधारकर भेजते रहेंगे। इस बार तुमने गिरधरका पूरा पता भेजा है, इसलिए पत्र उस पतेपर भेज रहा हूँ, ताकि वह तुम्हें जल्दी मिले। ऐसा लगता है कि तुम्हारी भी इच्छा यही है। 'नवजीवन' तुम्हें क्यों नहीं मिलता, इस बातकी मैं जाँच कर रहा हूँ। इस बीच आज तो यहींसे जायेगा। गुरुजीका वादमें क्या हुआ? अंग्रेजी-गुजराती शब्दकोश मिलता है। एक मँगाकर तुम्हें भेजूंगा। उसकी कीमत तुम्हें नहीं भेजनी है। दूसरी पुस्तकें तथा कुछ और चाहिए तो वह भी मँगाना। अगले महीनेके आरम्भ में मसूरी जाना तय हुआ है। साथमें महादेव, प्यारेलाल और सुब्बैया होंगे।

गुजराती प्रति (एस० एन० १९३७९) को माइक्रोफिल्मसे।

१८५. टिप्पणियाँ

चित्तरंजन सेवासदन

अखिल बंगाल स्मारकके रूप में जो अस्पताल खोला जानेवाला था, वह आखिरकार स्वर्गीय देशबन्धुके पुश्तैनी भवनमें, जिसे उन्होंने एक न्यासको सौंप दिया था, खोल दिया गया है। न्यासका एक उद्देश्य स्त्रियोंके लिए अस्पतालकी स्थापना करना था। पाठक यह तो जानते ही हैं कि न्यासियोंने जो दस लाख रुपया इकट्ठा करनेकी आशा रखी थी, उसमें से कोई आठ लाख रुपया जमा हो पाया है। न्यासियोंमें से एक श्रीयुत नलिनी रंजन सरकारने मुझे जो ब्योरा[१] भेजा है, वह निम्न प्रकार है:

भवनको अस्पतालके उपयुक्त बनाने के लिए उसकी पूरी तरहसे मरम्मत कर दी गई है और जरूरी परिवर्तन भी कर दिये गये हैं। अस्पतालके लिए फर्नीचर और तमाम सामान खरीद लिया गया है। डाक्टर, एक प्रधान परिचारिका (मैट्रन) और परिचारिकाएँ (नर्सेज) नियुक्त कर ली गई हैं और उन्होंने अपना-अपना काम सँभाल लिया है।...
 
  1. इसके केवल कुछ अंशोंका अनुवाद यहाँ दिया जा रहा है।