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पत्र: स्वामी श्रद्धानन्दको

यह जानकर बड़ी प्रसन्नता हुई कि आपने काफी सूत इकट्ठा कर लिया है। मैं समझता हूँ, वह मुझे यथासमय मिल जायेगा। शेष मिलनेपर ।

आपका,

श्रीमती सरोजिनी नायडू

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९३७८) की फोटो-नकलसे।

१८०. पत्र : अब्दुर्रहमानको

साबरमती आश्रम
२४ मार्च, १९२६

भाई अब्दुररद्देमान,

आपका पत्र मिला। यदि वापिस हिन्दूधर्ममें आना चाहते हो तो मुझको और हकीकत देना चाहिए। उसके बाद ही मैं मेरा अभिप्राय दे सकता हूँ।

(१) उमर क्या है?
(२) माता-पिता जिन्दे हैं?
(३) इस्लाम कब लायें? लानेका कैसे हुआ?
(४) 'कुरान शरीफ' का अभ्यास किया है?
(५) अब हिन्दूधर्ममें क्यों आना चाहते हो?
(६) शादी हुई है?
(७) बुजुर्ग मुसलमानों में से किसीको पहचानते हो?

विद्याध्ययनके लिये राजेन्द्र बाबुसे मिलना चाहिए। क्योंकि विद्यापीठका कारोबार इन्हींके हस्तक है।

मूल प्रति (एस० एन० १२०४४) की माइक्रोफिल्मसे।

१८१. पत्र : स्वामी श्रद्धानन्दको

आश्रम
२४ मार्च, १९२६

भाई साहेब,

आपका पत्र मीला। जानबूजके जलियांवाला बागके लिये मैंने कुछ नहीं लिखा है। मेरा अभिप्राय मैंने जेलमें से निकलनेके बाद ही भेज दिया था कि आज हमारे कुछ भी मकान नहीं बनाना चाहिए। हिंदु-मुसलमान इत्यादि धर्मीओंका ऐक्यका भी वह महान् स्मरणचिह्न होगा। आज अगर हम कुछ भी बनायें तो वह झगड़ेका एक और कारण बन सकता है। पैसा सुरक्षित है ऐसा मेरा खयाल है। जमीन साफ रक्खी जाती है और उस जगहपर एक बगीचा-सा बन गया है। आजकलकी हमारी गंदी

 
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