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१७८. पत्र : जमनालाल बजाजको

साबरमती आश्रम
बुधवार, [२४ मार्च, १९२६][१]

चि० जमनालाल,

तुम्हारा पत्र मिला। हकीम साहबका भी मिल गया है। हकीम साहबको आज निम्नलिखित तार भेजा है:

"पत्रके लिए धन्यवाद। आप मित्रगण जो भी इन्तजाम करेंगे, अनुकूल होगा।"

अब तुम जो तय करो सो सही। मसूरी जानेके पहले मुझे किसी और जगह रखना चाहो तो वैसा कर लेना। बाकी तो सीधे मसूरी जानेके लिए भी तैयार हूँ। वहीं सर्दी बहुत ज्यादा होगी, इसकी कोई बात नहीं। इतनी तो बर्दाश्त हो जायेगी।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती पत्र (जी० एन० २८६०) की फोटो-नकलसे।

१७९. पत्र : सरोजिनी नायडूको

साबरमती आश्रम
२४ मार्च, १९२६

आपका तार मिला, लेकिन मेरे पत्रोंके बारेमें तो आप बिलकुल चुप ही हैं। आप यह तो नहीं चाहेंगी कि जिस चीजको खुद मेरा ही मन स्वीकार नहीं करता, उसके लिए 'यंग इंडिया' के पृष्ठोंमें सिफारिश करूँ। यह जो दक्षिण आफ्रिकाके लिए चन्दा करनेका प्रस्ताव है, मेरे खयालसे गलत है। समझमें नहीं आता कि उसका प्रयोजन क्या हो सकता है। इम्पीरियल सिटिजनशीप एसोसिएशन (साम्राज्यीय नागरिक संघ) द्वारा दिये गये पचास हजार रुपये काफी होने चाहिए और आगे जरूरत साबित करनेपर उसीसे और भी अनुदान प्राप्त किया जा सकता है। और जबतक संघके पास दक्षिण आफ्रिका-जैसे मामलोंपर खर्च करनेके लिए पैसा है, तबतक जनतासे कुछ देने को कहना मैं गलत मानता हूँ। इसके अलावा, मेरे विचारसे जैसी स्थिति कानपुरमें थी, उसमें कोई फर्क नहीं आया है। उस समय मैंने अखिल भारतीय स्तरपर चन्दा करने के खिलाफ राय जाहिर की थी। अगर आप या सोराबजी मेरी आपत्तियोंका निवारण कर सकें, तो मैं खुशी-खुशी इस विषयपर लिखूँगा।

 
  1. वर्ष मसूरी जानेकी बातके उल्लेखके आधारपर निश्चित किया गया है।