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१७६. पत्र : वीरसुतको

आश्रम
२३ मार्च, १९२६

भाई वीरसुत,

तुम्हारा पत्र मिला। तुम बातको और साफ करवाना चाहते हो। प्रत्येक किशोर एक वर्षका व्रत ले, यह अर्थ उसमें समाहित हो है। लेकिन यदि यह स्पष्ट न हो, तो व्रतमें इतना जोड़ लेना। बड़े लोग जो व्रत लेते हैं, वह भी एक-एक वर्षका ही होता है। किसी व्यक्तिको यदि अमुक वस्तु कर्त्तव्य जान पड़ती हो और वह दूसरोंको उसका भान करवाये तथा उसके पालनका आग्रह करे, तो इसे मैं बिलकुल उचित मानता हूँ। बालकों को सतत जाग्रत रखनेके लिए शिक्षक तो होने ही चाहिए। भाई गोपालराव बालकोंको जो समझा रहे हैं, उसमें मुझे तो औचित्य ही दिखाई देता है।

मोहनदासके आशीर्वाद

दक्षिणमूर्ति
भावनगर

गुजराती पत्र (एस० एन० १९८८१) की माइक्रोफिल्मसे।

१७७. पत्र : लालजीको

आश्रम
२३ मार्च, १९२६

भाई लालजी,

आपका पत्र मिला। मेरी प्रतिज्ञाके बारेमें आपने जो सुना, वह सच है। इसलिए अब तो मुझे आपकी परिषद्को सफलताको कामना करके ही सन्तोष मानना होगा। मेरी इच्छा है कि अन्त्यज-मात्र शराब न पीने और मांस न खानेका व्रत ले और यह भी चाहता हूँ कि सब खादी ही पहननेका निश्चय करें।

मोहनदास गांधी वन्देमातरम्

गुजराती पत्र (एस० एन० १९८८२) की माइक्रोफिल्मसे।