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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

'भक्तराज'[१] और 'गीता', ये दोनों मुझपर हावी हैं और उनका वाहन बनना मुझे प्रिय है। इसके सिवा, मुझे यह अच्छा लगता है कि आश्रम में पड़े-पड़े बिना परिश्रम किये में कुछ कर तो सकता हूँ। और मैं देखता हूँ कि बा को भी यह बहुत प्रिय लगता है। ऐसे अनेक कारणोंसे और मेरी तबीयत यहाँ अच्छी रहती है, इसलिए मेरी तनिक भी जानेको इच्छा नहीं होती। लेकिन इस सबके बावजूद यदि मैं जाता हो हूँ तो उसका कारण अपनेको सन्तोष देना है।

अब आपकी समस्याके बारेमें। आप घर छोड़कर बिलकुल निरुपाधि बन जायें, यह बात मुझे पसन्द है। किन्तु काकीको कमसे-कम आघात पहुँचना चाहिए, ऐसा में मानता हूँ। मुझे ऐसा लगता है कि आपने काकीके वापस आनेकी बात सोची ही नहीं है, लेकिन मैंने उसकी कल्पना की है। जबतक वे अपना पत्नीत्व सिद्ध करना चाहेंगी तबतक वे आपसे मिलने नहीं आयेंगी, लेकिन जब वे आपके प्रति बिलकुल उदासीन हो जायेंगी तब आपसे मिलनेकी खातिर भी आ सकती हैं, लेकिन इसके सिवा भी उनके यहाँ रहनेको व्यवस्था होनी चाहिए। आपने तो यह घर छोड़ ही दिया और यह उचित है। लेकिन आश्रमको, अर्थात् मुझे और आपको, काकीके लिए आश्रमकी भूमिपर रहनेकी व्यवस्था करनी ही चाहिए। यदि यह घर नहीं तो दूसरा घर या अब जो बन रहा है वह उन्हें दिया जाये, किन्तु यह बात अलग है। परन्तु इस कर्तव्यका ध्यान आपको अवश्य होना चाहिए। आपकी आज्ञाका पालन तो शंकरको प्रफुल्लित हृदयसे करना चाहिए, यह बात मैं शंकरको बुलाकर समझानेवाला हूँ। शंकरको क्या करना चाहिए, इस बातपर में पिछले तीन-चार दिनोंसे रमणीकलालके साथ विचार कर रहा हूँ। मैं इस निष्कर्षपर तो पहुँच गया हूँ कि शंकरको किसीके साथ रहना चाहिए। रमणीकलाल मेरे इस विचारसे सहमत है। आपने उसे सीधे ठाकोरभाईको देख-रेख में रखने की जो बात कही थी सो मुझे याद है। इसलिए मैंने शंकरके सम्बन्धमें ठाकोरभाईकी रिपोर्ट मांगी है। इसमें शंकरके बारेमें चिन्ता करनेकी कोई जरूरत नहीं है। लेकिन वह अव्यवस्थित है, आलसी है, यह मैं उसकी अनुपस्थितिसे समझ रहा हूँ। यदि हम उसके इन दोषोंको बने रहने दें तो उसके अन्य परिणाम निकल सकते हैं। इसलिए यह विचार है कि शंकरको ज्यादा देख-रेख होनी चाहिए और उसे नियम-पालनके बारेमें प्रोत्साहित करना चाहिए।

मैं इस तरहके परिवर्तन करना चाहता हूँ। यह सब लिखनेका मेरा विचार न था, परन्तु चूँकि शंकरके सम्बन्धमें आपने आज्ञाएँ जारी की हैं, इसलिए भी इस सम्बन्धमें मैं जो कुछ सोच रहा हूँ सो आपको लिख दिया है।

गुजराती प्रति (एस० एन० १९३७३) की फोटो-नकलसे।

 
  1. पिल्प्रिम्स प्रोग्रेस ।