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पत्र : काका कालेलकरको

मेरी तबीयत अच्छी ही रहती है। अभी तो यहाँ गर्मी पड़ती ही नहीं, ऐसा कहा जा सकता है। आज ही थोड़ी मालूम हो रही है।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती पत्र (एस० एन० १९८८०) की माइक्रोफिल्मसे।

१७५. पत्र : काका कालेलकरको

साबरमती आश्रम
मंगलवार, चैत्र सुदी १० [२३ मार्च, १९२६][१]

भाई काका,

आपको मेरा पत्र मिला होगा। आज आपके दो पत्र मिले। आप मसूरी आयें, इस बारेमें तो मैंने आपको लिखा ही था, लेकिन यदि हमारे भाग्यमें वियोग सहना लिखा होगा तो हम सहन करेंगे। मतलब यह कि यदि सिंहगढ़ आपके स्वास्थ्यके अनुकूल है, वहाँकी शान्ति भी आपको खूब माफिक आ गई है तो उस ध्रुवको छोड़कर केवल मेरे साथ रहने की खातिर आप इस अध्रुवका सेवन करें, ऐसी मेरी माँग नहीं है। मैं वहाँ नहीं आ सकता, क्योंकि जैसा कि आप खुद ही मानते हैं, वहाँ मेरा निर्वाह नहीं हो सकता। मैं जहाँ जाऊँगा वहाँ मुझे प्यार अली और नूरबानोके रहनेकी व्यवस्था भी करनी ही होगी। तुम्हारी तरह गोमती बहनको भी वायु परिवर्तनके लिए बाहर भेजा है, सो उसके लिए भी व्यवस्था करनी होगी। वह न आये, यह अलग बात है। लेकिन अब मुझे चौथे व्यक्ति, मथुरादासके लिए भी व्यवस्था करनी है। मथुरादासको डाक्टरने देवलाली छोड़ने के लिए कहा है। इसलिए या तो वह वहाँ जाये अथवा मसूरी आये। आप यदि वह स्थान छोड़ दें तो भी उस बंगलेका उपयोग तो रहेगा ही, क्योंकि हमारा परिवार एक बड़ा परिवार है। यह सच है कि यदि बंगला न लिया होता तो उसके उपयोगका विचार भी न होता। इसके अलावा मसूरीमें सब प्रबन्ध हो चुका है। इस बारेमें तार दिये जा चुके हैं। अब इस कार्यक्रमको बदलना ठीक नहीं है। मेरे लिए वहाँ शान्ति नहीं है, यह तो मैं जानता ही हूँ। पंचगनी और मसूरीमें बहुत ज्यादा फर्क नहीं हो सकता। पंचगनीमें एकांत नहीं है लेकिन सुना है, मसूरीमें बंगले दूर-दूर होनेके कारण कुछ एकान्त मिल जाता है। दूसरा फर्क यह है कि जहाँ मसूरीमें अंग्रेज ज्यादा हैं वहाँ पंचगनी में भारतीय हैं। लेकिन आप यह समझ लें कि वहाँ मैं वायु परिवर्तनके लिए नहीं जा रहा हूँ, कर्त्तव्य-पालनके लिए जा रहा हूँ। कारण कि मैंने न जानेकी खूब कोशिश की। फिलहाल मेरे लिए शान्ति तो यहीं है। यहाँके जीवनमें में खूब ओत-प्रोत हो गया हूँ और रस ले रहा हूँ।

 
  1. वर्ष मसूरी जाने की चर्चाके आधारपर निश्चित किया गया है।