पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 30.pdf/२०३

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१६७
पत्र: देवदास गांधीको

नहीं बन जाना चाहिए, बल्कि परीक्षा तथा कठिनाइयोंको चुनौती देते हुए इसे दुगुनी शक्ति और क्षमता रूपी विशुद्धतम कुन्दनके रूपमें ढालना चाहिए। मुझे अपनी मनःस्थितिका पूरा हाल लिखना।

साथके पत्र सम्बन्धित व्यक्तियोंको पहुँचानेकी व्यवस्था करना। एक हनुमन्तरावकी पत्नीके लिए है और दूसरा उनके भाईके लिए।

हृदयसे तुम्हारा,

संलग्न पत्र: २

श्रीयुत कृष्ण

नेल्लूर

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९३६९) की माइक्रोफिल्मसे।

१६८. पत्र : देवदास गांधीको

साबरमती आश्रम
रविवार, चैत्र सुदी ८ [२१ मार्च, १९२६]

चि० देवदास,

बहुत दिनतक बाट जोहने के बाद तुम्हारा पत्र मिला। तुम्हें यह जानकर दुःख होगा कि कल रात विशाखापट्टनम में हनुमन्तरावका स्वर्गवास हो गया। उनकी मृत्यु तो मेरी दृष्टिसे बहुत भव्य हुई। उन्होंने अपनी टेक अन्ततक नहीं छोड़ी। तथापि उनके गुणोंको स्मरण करके मनमें उद्वेग होता है। हनुमन्तरावने मुझे दस-बारह दिन पहले ही एक लम्बा पत्र लिखा था तथा कुनैन-संखिया और लोहेके इंजेक्शन लेनेपर मीठी झिड़की भी दी थी।

कान्तिलालके लिए लगातार बहुत मांग की जा रही थी, इसलिए उसे अमरेली भेज दिया है। अतः लगता है कि अब रामदास यहाँ आयेगा। तुम किशोरलालसे तो नित्य मिलते ही होगे। मैंने उसे नासिकके पतेपर पत्र लिखा है। उसे वह मिला या नहीं, यह उससे पूछना। आशा है, तारामती और दिलीप अच्छी तरह होंगे।

गुजराती प्रति (एस० एन० १९३७१) की माइक्रोफिल्मसे।