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१६६. पत्र : डी० वी० रामस्वामीको[१]

साबरमती आश्रम
२१ मार्च, १९२६

प्रिय मित्र,

अपने इस भारी दुःखमें मुझे भी शरीक मानें। मैं जानता हूँ कि हनुमन्तराव आपके लिए क्या थे। अभी कुछ ही दिन पहले उन्होंने मुझे एक पत्र लिखा था। उसका उद्देश्य तो एक मिशनरीके साथ हुई आपकी मुलाकातके बारेमें जानकारी-भर देना था, लेकिन उसमें उन्होंने बताया था कि आप दोनोंके बीच कितना स्नेह था। आशा है, आप इस दुःखके आगे हिम्मत नहीं हार बैठेंगे और उनकी पत्नीको सान्त्वना देंगे।

आपका पता मुझे मालूम नहीं है। इसलिए यह पत्र आपको कृष्णकी मार्फत भेज रहा हूँ। हनुमन्तरावकी पत्नीके नाम लिखा पत्र आप पढ़ लीजिए और अगर वे आश्रम आना चाहें तो उन्हें भेजने कोई संकोच न करें।

ईश्वर आपका कल्याण करे।

हृदयसे आपका,

स्वर्गीय हनुमन्तरावके भाई

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९३६८) की माइक्रोफिल्मसे।

१६७. पत्र : सी० वी० कृष्ण

साबरमती आश्रम
२१ मार्च, १९२६

प्रिय कृष्ण,

तुम्हारा हृदय-विदारक तार मिला। इसपर सहसा विश्वास नहीं होता। तुम्हारा दुःख मैं समझ सकता हूँ। ऐसा मानो कि मुझे भी उतना ही दुःख हुआ है। तुमसे और अन्य मित्रोंसे इस शोकपूर्ण घटनाको सविस्तार जाननेकी आशा रखता हूँ। जहाँतक हनुमन्तरावका सम्बन्ध है, उन्हें श्रेयस्कर मृत्यु मिली है, और यह सोचकर हमें प्रसन्न होना चाहिए कि अपने आदर्शके प्रति उनकी लगन और निष्ठा महान् थी और अपनी मृत्युसे तो उन्होंने उसपर पक्की मुहर लगा दी है। ईश्वर हम सबको भी अपने-अपने आदशके प्रति वैसी ही निष्ठाका वरदान दे। तुम्हें इस दुःखका दास

 
  1. देखिए "पत्र : डी० वी० रामस्वामीको", ३-४-१९२६।