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पत्र : श्रीमती हनुमन्तरावको

न रहेगा। इन आँकड़ोंके अतिरिक्त मण्डलने चरखोंकी बिक्रीके आँकड़े भी दिये हैं। मैं उनमें से कुछ यहाँ देता हूँ:[१]

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २१-३-१९२६

१६५. पत्र : श्रीमती हनुमन्तरावको

साबरमती आश्रम
२१ मार्च, १९२६

प्यारी बेटी,

जैसे हनुमन्तराव मेरे लिए पुत्रवत् थे, वैसे ही तुम मेरे लिए पुत्रीके समान हो। अपने एक पत्रमें उन्होंने तुम्हें बहुत वीर स्त्री बताया था। जो दुःख तुमपर पड़ा, किसी भी अच्छी पत्नीके लिए इससे बड़ा दुःख और कुछ नहीं हो सकता, किन्तु मुझे आशा है कि इस महादुःखको घड़ी में तुम उस वीरताका परिचय दोगी। लेकिन, अगर मेरी तरह तुम्हें भी ऐसा लगता हो कि यद्यपि हनुमन्तरावका शरीरपात हो गया है, फिर भी आत्मासे वे हमारे बीच विद्यमान हैं तो तुम अपने पतिके दायित्वों का भार अपने सिर लेकर अपने कार्योंके रूपमें उन्हें जीवित रखोगी और इस तरह दुखको खुशीमें बदल दोगी। हिन्दू-धर्ममें एक पवित्र और पूज्य वस्तुके रूपमें वैधव्यकी प्रतिष्ठाका मतलब है, मरणोत्तर जीवनमें ज्वलन्त विश्वास।

अगर तुम आश्रम आकर इसे अपना घर बना लो तो मुझे बहुत खुशी होगी। अगर तुम समझती हो कि यहाँ तुम मजेमें रह सकती हो तो इसे शिष्टाचारवश रखा गया ऐसा प्रस्ताव न समझो जिसे स्वीकार न किया जा सकता हो। इसके विपरीत, अगर तुम यहाँ आना तय कर लो तो तुम्हारे आश्रम-निवासको में एक बहुमूल्य प्राप्ति मानूँगा। और यह सोचकर मुझे बहुत प्रसन्नता होगी कि यद्यपि अब हनुमन्तराव हमें सशरीर नहीं मिल सकते, फिर भी अपनी अर्धांगिनीके रूपमें वे हमारे बीच विद्यमान हैं। मैं यह सुनना चाहता हूँ कि ऐसे मौकोंपर हमारे बीच जंगली तरीकेसे दुःख प्रकट करनेका जो रिवाज है, उसका शिकार तुम नहीं हुई। वह हमारे धर्मोपदेशोंके बिलकुल विपरीत आचरण है।

हृदयसे तुम्हारा,

श्रीमती हनुमन्तराव

अंग्रेजो प्रति (एस० एन० १९३७०) को माइक्रोफिल्मसे।

 
  1. ये आँकड़े यहाँ नहीं दिये गये हैं।