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१६३. जाति-सुधार

अग्रवाल महासभाके अध्यक्षके रूपमें दिया गया श्री जमनालालजीका व्याख्यान पढ़ने और विचार करने योग्य है। इस व्याख्यानमें श्री जमनालालजीने पूर्ण स्वतन्त्रता और निर्भयता दिखाई है। यदि मारवाड़ी समाज जमनालालजीके सुझावोंके अनुसार कार्य कर सके तो वह जितना धन कमानेमें आगे बढ़ा हुआ है, उतना ही आवश्यक सुधारोंको करने में भी आगे बढ़ सकेगा। जमनालालजीने जिन सुधारोंपर जोर दिया है, उन सुधारोंकी आवश्यकता सारे हिन्दुस्तानमें और समस्त हिन्दू समाजमें है। बहिष्कारके शुद्ध हथियारका दुरुपयोग, नीतिहीन और देशहित विरुद्ध व्यापार, धनवानोंकी विलासिता, स्त्री-वर्ग द्वारा पाश्चात्य रहन-सहनका अपनाया जाना, बाल-विवाह, विवाहके खर्चका बोझा, उपजातियोंकी वृद्धि और बाल-शिक्षाका अभाव आदि त्रुटियाँ हिन्दू-समाजमें कमोबेश परिमाणमें सब जगह दिखाई देती हैं। ये त्रुटियाँ हमें सत्वहीन बनाती हैं, और स्वराज्यके मार्ग में रोड़ा अटकाती हैं। जमनालालजीने अपने व्याख्यानमें इन सब हानिकर रीति-रिवाजोंको त्यागनेपर और अस्पृश्यता निवारण, खादीके प्रचार और गोरक्षाके उपायों में संशोधन करनेपर काफी जोर दिया है। हम सबको यह आशा रखनी चाहिए कि अग्रवाल महासभामें उपस्थित हुए सब सभासद श्री जमनालालजीके सुझावोंपर अमल करेंगे और शेष हिन्दू-जातिका मार्ग सरल कर देंगे।

[गुजराती से]
नवजीवन, २१-३-१९२६

१६४. गुजरातमें खादीकी मासिक प्रगति

गुजरात खादी प्रचार-मण्डलने खादीके उत्पादन, विक्रय आदिका माघ मासका विवरण प्रकाशित किया है। उससे हमें इस प्रान्तमें खादीकी प्रगतिका कुछ अन्दाजा हो सकता है:[१]

उपर्युक्त विवरण १९ संस्थाओंसे प्राप्त आँकड़ोंका सार है। मण्डलसे सम्बन्धित अन्य चार संस्थाओंका विवरण इसमें नहीं है और इसी प्रकार काठियावाड़की संस्थाओंका विवरण भी नहीं है। इसलिए उपर्युक्त आँकड़ोंसे गुजरातमें खादीकी कुल प्रगतिका अन्दाजा नहीं लगाया जा सकता। लेकिन ये आँकड़े कुछ-न-कुछ प्रगति तो प्रकट करते ही हैं। आज यह प्रगति हमें तुच्छ जान पड़ेगी; लेकिन निरन्तर इसी तरह प्रगति होती रहे तो यह स्पष्ट है कि अन्तम खादीका व्यापक प्रचार हुए बिना

 
  1. ये आँकड़े यह नहीं दिये गये हैं।